भगवान राम आगे कहते हैं कि महतत्व आदि के क्रम से ही मेरे तेज
का विस्तार हुआ है । जो संपूर्ण जगत के साक्षी कालचक्र कर प्रवर्तक
हिरण्यगर्भस्वरूप मार्तण्डदेव (सूर्यदेव)
हैं, वे भी मेरे ही दिव्य स्वरूप से प्रकट हुए हैं । मैंने उन्हें अपना दिव्य
ऐश्वर्य, सनातन योग प्रदान किया है ।
कल्प के आदि में मुझसे प्रकट हुए चार वेद मैंने ही ब्रह्माजी
को दिए थे । सदा मेरे ही भाव से भावित ब्रह्मा मेरी आज्ञा से सृष्टि करते हैं और
मेरे उस दिव्य ऐश्वर्य को सदा वहन करते हैं ।
सर्वज्ञ ब्रह्मा मेरे
आदेश से ही संपूर्ण लोकों के निर्माण में संलग्न हुए हैं । आत्मयोनि ब्रह्मा मेरी
ही आज्ञा से चार मुखों वाले होकर सृष्टि रचना करते हैं ।
संपूर्ण लोकों के
उद्भव तथा प्रलयस्थान जो अनंत भगवान नारायण हैं, वे भी मेरि ही परम मूर्ति हैं जो
जगत के पालन में लगे हैं । जो संपूर्ण विश्व के संहारक भगवान कालरूद्र हैं, वे भी
मेरे ही शरीर हैं तथा मेरी ही आज्ञा से सदा संहार कार्य में प्रवृत्त रहते हैं ।
जो हव्यभोजी देवताओं
को हव्य पहुँचाते हैं, कव्यभोजी पितरों को कव्य की प्राप्ति कराते हैं तथा अन्य का
परिपाक करते रहते हैं वे अग्नि देव भी मेरी शक्ति से प्रेरित हो लोगों के खाये हुए
आहार-समूह का दिन-रात पाचन करते हैं ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।
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