धार्मिक वेदवादी विद्वान ज्ञान दृष्टि से मुझे देखते हैं । जो
भक्तजन मेरी उपासना करते हैं, उनके निकट मैं नित्य निवास करता हूँ- ‘तेषां
संनिहितो नित्यं ये भक्ता मामुपासते’ ।
जो ब्राह्मण, क्षत्रीय तथा धार्मिक वैश्य मेरी आराधना करते
हैं, उन्हें मैं अपना परमानंदमय धाम-परमपद प्रदान करता हूँ । दूसरे भी शूद्र आदि
जो विपरीत कर्म में लगे रहने वाले तथा नीच जाति के हैं, वे भी यदि भक्ति भाव से
मेरा भजन करते हैं तो इस संसार बंधन से मुक्त हो जाते हैं और समयानुसार मुझमें मिल
जाते हैं ।
मेरे भक्तों का कभी
विनाश नहीं होता । मेरे भक्तों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । मैंने पहले से ही
यह घोषणा कर रक्खी है कि मेरे भक्त का नाश नहीं होता है-
न मद्भक्ता विनश्यन्ते मद्भक्ता
वीतकल्मषाः ।
आदावेत्तप्रतिज्ञातं न में भक्तः
प्रणश्यति ।।
जो मूढ़ मेरे भक्त की निंदा करता है, वह मुझ देवाधि भगवान की ही
निंदा में रत है । जो भक्तिभाव से भक्त का पूजन करता है, वह सदा मेरी ही पूजा में
लगा हुआ है । जो मेरी आराधना के निमित्त से मुझे पत्र-पुष्प, फल और जल अर्पित करता
है तथा मन और इन्द्रियों को काबू में रखता है, वह मेरा भक्त माना गया है ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय हनुमान ।।
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