हनुमान जी महाराज सूर्य देव को वचन के रूप में दी हुई गुरू दक्षिणा
को पूरी करने के लिए किष्किन्धा में आ गए । और सुग्रीव जी के सचिव बन गए । जैसे
लंका में जब रावण का राज था तब भक्त विभीषण वहाँ रहते थे । और विभीषण जी के पास
कुछ सचिव थे । जब रावण ने विभीषण जी को देश निकाला दिया तो विभीषण जी के सचिव भी
उनके साथ ही लंका से चले आए थे और विभीषण जी ने भगवान श्रीराम की शरण ग्रहण कर
लिया था ।
ठीक इसी तरह जब
बालि ने सुग्रीव जी को राज से बाहर खदेड़ दिया तो सुग्रीव जी के सचिव भी उनके साथ
ही ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे । कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि जब सुग्रीव जी बालि
द्वारा राज से बाहर खदेड़ दिए गए थे और वे ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे थे उस समय
हनुमानजी सुग्रीव जी के पास आए थे और सुग्रीव जी के मंत्री बन गए थे ।
लेकिन श्रीवाल्मीकि
रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार हनुमानजी किष्किन्धा में ही सुग्रीव जी के सचिव बन
गए थे । हनुमानजी की बाल्यावस्था की उदंडता से परेशान होकर एक ऋषि ने हनुमानजी को
शाप दे दिया था कि तुम अपना बल भूल जाओ । बाद में माता अंजना की प्रार्थना से और
हनुमानजी द्वारा सम्पन्न होने वाले भविष्य के कार्य को देखकर ऋषि ने अपने शाप में
संशोधन करते हुए कहा था कि जब कोई इनको इनके बल का स्मरण कराएगा तो ये अपने भूले
हुए बल पराक्रम से युक्त हो जायेंगे । इस शाप के चलते हनुमानजी को अपने बल का
स्मरण नहीं रहता था ।
इसलिए जब बालि ने
सुग्रीवजी को मारते हुए किष्किन्धा से बाहर खदेड़ दिया तो उस समय अपने बल का स्मरण
न होने से हनुमानजी केवल देखते रह गए थे । सुग्रीव की कोई सहायता नहीं कर पाए थे ।
इस
प्रकार हनुमान जी सुग्रीव जी, जामवंत जी आदि के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर ही रहने लगे
और अपने आराध्यदेव अग-जग के नायक भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगे ।
एक दूसरी कथा के
अनुसार हनुमान जी पहले अयोध्या जी में भगवान श्रीराम की सेवा में आ गए थे । और जब
रामजी और लक्ष्मणजी ऋषि विश्वामित्र के साथ उनकी यज्ञ की रक्षा करने के लिए उनके
साथ जाने लगे तब रामजी ने हनुमानजी को बिदा कर दिया और बोले अब तुम सुग्रीव के पास
चले जाओ और वहीं मेरे आने की प्रतीक्षा करो । कुछ दिनों में मैं स्वयं चलकर
तुम्हारे पास आ जाऊँगा । इस प्रकार हनुमानजी सुग्रीव जी के सचिव बन गए और भगवान
श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगे ।
।। जय श्रीहनुमानजी ।।
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