सिंहिका नाम की एक राक्षसी थी जिसने समुंद्र के जल में ही अपना निवास बना रखा था । वह माया से आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को पकड़ लेती थी । जो भी जीव अथवा जंतु आकाश मार्ग से समुंद्र के ऊपर से उड़ते थे उनकी छाया (प्रतिबिम्ब) जल में पड़ती थी जिसे देखकर वह छाया को ही पकड़ लिया करती थी । वह जिसकी भी छाया पकड़ती थी उसकी गति आकाश में रुक जाती थी । और इस प्रकार सदा आकाश मार्ग से चलने वाले जीवों को वह खा जाया करती थी ।
शास्त्रों में इसी सिंहिका को राहु
की माता बताया गया है । हनुमान जी महाराज जब सुरसा जी (जो सापों की माता थीं ) से वरदान
पाकर आगे चले तो राहु माता सिंहिका हनुमानजी को अपनी माया से पकड़कर अपना ग्रास
बनाना चाहती थी ।
इसलिए
राक्षसी सिंहिका ने छाया के जरिए पकड़ने का छल हनुमान जी के साथ भी किया । उसने हनुमानजी की छाया, जो समुंद्र के जल में पड़ रही थी, पकड़ लिया । और हनुमानजी की गति अवरुद्ध हो गई ।
लेकिन हनुमान
जी उसका कपट तुरंत पहचान
गए । अर्थात हनुमान जी को पता चल गया कि राक्षसी ने मेरी गति को रोक दिया है और मुझे खा जाना चाहती है ।
हनुमानजी ऊपर उड़ रहे थे और सिंहिका
ने हनुमानजी की छाया पकड़कर उन्हें नीचे ले आई । हनुमानजी ने सिंहिका का वध करना ही उचित समझा । इसलिए पवन के पुत्र वीर और मतिधीर हनुमान जी ने उसे मार कर समुंद्र
के उस पार पहुँच गए ।
ताहिं मारि मारुतसुत वीरा । वारिधि पार गयेउ मतिधीरा ।।
।। महावीर हनुमान जी की जय ।।
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