राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Friday, April 18, 2025

सुन्दरकाण्ड-५- हनुमानजी द्वारा सिहिंका राक्षसी का वध और समुंद्र के पार जाना

 

सिंहिका नाम की एक राक्षसी थी जिसने समुंद्र के जल में ही अपना निवास बना रखा था वह माया से आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को पकड़ लेती थी जो भी जीव अथवा जंतु आकाश मार्ग से समुंद्र के ऊपर से उड़ते थे उनकी छाया (प्रतिबिम्ब) जल में पड़ती थी जिसे देखकर वह छाया को ही पकड़ लिया करती थी वह जिसकी भी छाया पकड़ती थी उसकी गति आकाश में रुक जाती थी और इस प्रकार सदा आकाश मार्ग से चलने वाले जीवों को वह खा जाया करती थी  

शास्त्रों में इसी सिंहिका को राहु की माता बताया गया है । हनुमान जी महाराज जब सुरसा जी (जो सापों की माता थीं ) से वरदान पाकर आगे चले तो राहु माता सिंहिका  हनुमानजी को अपनी माया से पकड़कर अपना ग्रास बनाना चाहती थी ।


इसलिए राक्षसी सिंहिका ने छाया के जरिए पकड़ने का छल हनुमान जी के साथ भी किया उसने हनुमानजी की छाया, जो समुंद्र के जल में पड़ रही थी, पकड़ लिया । और हनुमानजी की गति अवरुद्ध हो गई ।


लेकिन हनुमान जी उसका कपट तुरंत पहचान गए अर्थात हनुमान जी को पता चल गया कि राक्षसी ने मेरी गति को रोक दिया है और मुझे खा जाना चाहती है

 

हनुमानजी ऊपर उड़ रहे थे और सिंहिका ने हनुमानजी की छाया पकड़कर उन्हें नीचे ले आई । हनुमानजी ने सिंहिका का वध करना ही उचित समझा । इसलिए पवन के पुत्र वीर और मतिधीर हनुमान जी ने उसे मार कर समुंद्र के उस पार पहुँच गए


ताहिं मारि मारुतसुत वीरा । वारिधि पार गयेउ मतिधीरा ।।


।। महावीर हनुमान जी की जय ।।


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