राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Thursday, December 26, 2024

श्रीराम गीता-भाग १७-चौदहों भुवन तथा निखिल ब्रह्माण्ड मुझ परमात्म-देव के शासन से ही कार्यरत रहते हैं

 

भगवान राम हनुमान जी से कहते हैं कि जो नाम से अनंत हैं, जिनकी महिमा भी अनंत है तथा जो संपूर्ण देवताओं के प्रभु हैं वे शेष भी मेरी ही आज्ञा से समस्त लोक को सिरपर धारण करते हैं । जो सांवर्तक अग्निदेव नित्य बड़वारूप से स्थित हो संपूर्ण सागर के जल को पीते रहते हैं वे भी मुझ परमेश्वर के आदेश से ही चलते हैं ।

 

  आदित्य, वसु रूद्र, मरुद्गण, दोनों अश्वनीकुमार तथा अन्य संपूर्ण देवता मेरे शासन में ही रहते हैं । गंधर्व नाग, यक्ष, सिद्ध, चारण, भूत, राक्षस तथा पिशाच भी मुझ स्वयम्भू के शासन में ही स्थित हैं । कला, काष्ठा, निमेश, मुहूर्त, दिवस,क्षण,ऋतु, वर्ष, मास और पक्ष भी मुझ प्रजापति के शासन में स्थित हैं । युग, मन्वन्तर, परार्ध, पर तथा अन्यान्य कालभेद भी मेरी ही आज्ञा में स्थित हैं । चार प्रकार के समस्त स्थावर और जंगम प्राणी मुझ स्वयम्भू की आज्ञा से ही चलते हैं ।


 संपूर्ण नगर, चौदहों भुवन तथा निखिल ब्रह्माण्ड मुझ परमात्म-देव के शासन से ही कार्यरत रहते हैं । अतीत काल में जो असंख्य ब्रह्माण्ड हो गए हैं, वे भी संपूर्ण पदार्थ समूहों के साथ मेरी आज्ञा से ही अपने कर्तव्य पालन में प्रवृत्त हुए थे । चारों ओर भविष्यकाल में जो ब्रह्माण्ड होंगे वे भी अपनी समस्त वस्तुओं के साथ सदा मुझ परमात्मा की ही आज्ञा का पालन करेंगे । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन,बुद्धि, अहंकार तथा आदि प्रकृति भी मेरे आदेश से ही कार्य करते हैं ।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय श्रीहनुमान ।।

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