जामवंत जी के सुंदर बचन हनुमान जी महाराज को बहुत अच्छे लगे । हुनमान जी ने प्रसन्न वदन कहा कि यहाँ आप लोग कंद-मूल फल खाकर कष्ट सहकर भी मेरी तब तक प्रतीक्षा कीजिए जब तक मैं सीताजी का समाचार लेकर न आ जाऊँ । हनुमान जी ने कहा कि मुझे बहुत हर्ष हो रहा है इसलिए काज हो जाएगा । मैं सीता जी का पता लगाने में सफल हो जाऊँगा ।
ऐसा कहकर हनुमान जी ने सभी को प्रणाम करके खुश होकर रघुनाथ जी को हृदय में धारण करके चल दिए ।
समुंद्र के किनारे एक सुंदर पर्वत था । हनुमान जी सहज ही देखते ही देखते उसके ऊपर चढ़ गए । और बार-बार राम जी का सुमिरन करके वहाँ से छलांग लगाई । बलवान हनुमान जी ने इस वेग से उड़ान भरी कि उनके पैर के दबाव से पर्वत तुरंत धँसता हुआ पताल चला गया ।
जिस तरह भगवान राम का वाण अमोघ होता है और चलता है ठीक इसी तरह हनुमान जी महाराज भी चले ।
राम जी के वाण की तरह चलने का मतलब क्या है ? भगवान राम के वाण की कई विशेषता होती है । यह अमोघ होता है । यानी कभी निष्फल नहीं होता । इसका मतलब यह है कि हनुमान जी महाराज भी निष्फल नहीं होंगे । अर्थात वे सीता जी का पता लगा ले जाएँगे । लक्ष्य तक पहुँच जाएँगे ।
दूसरे राम जी का वाण बहुत ही गतिमान होता है । इसी तरह बड़ी तीव्र गति से हनुमान जी भी चले । अंगद जी कह रहे थे कि मैं चला तो जाऊँगा लेकिन संशय है कि वापस आ पाऊँगा या नहीं । लेकिन राम जी का वाण लक्ष्य वेध कर वापस तर्कस में आ जाता है यह इसकी यानी राम वाण की बड़ी विशेषता होती है । इसी तरह यानी राम वाण की तरह हनुमान जी महाराज वापस आ जाएँगे इसमें कोई संशय नहीं है ।
इस प्रकार परम बलशाली और वेगशाली हनुमानजी ने सीताजी की खोज के लिए
समुंद्र को लाँघने के लिए बार-बार भगवान श्रीराम का स्मरण करके उड़ान भरके
आकाशमार्ग से लंका की ओर प्रस्थान किया-
बार-बार राम को संभारि रामकाज हेतु रामदूत उड़ि चले ।
बल बुद्धि ज्ञान के निधान अंजना को लाल जैसो कौन मिले ।।
महावीर वेग ते पहाड़, नीर तरु आदि जोर-जोर ते हिले ।
पूरेगी मन आस रामदास खास, देखि देवतन के मन खिले ।।
।। जय हनुमान ।।
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