राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Saturday, December 16, 2023

हनुमानजी का सुग्रीवजी का सचिव बनना

 

हनुमान जी महाराज सूर्य देव को वचन के रूप में दी हुई गुरू दक्षिणा को पूरी करने के लिए किष्किन्धा में आ गए । और सुग्रीव जी के सचिव बन गए । जैसे लंका में जब रावण का राज था तब भक्त विभीषण वहाँ रहते थे । और विभीषण जी के पास कुछ सचिव थे । जब रावण ने विभीषण जी को देश निकाला दिया तो विभीषण जी के सचिव भी उनके साथ ही लंका से चले आए थे और विभीषण जी ने भगवान श्रीराम की शरण ग्रहण कर लिया था ।

 

    ठीक इसी तरह जब बालि ने सुग्रीव जी को राज से बाहर खदेड़ दिया तो सुग्रीव जी के सचिव भी उनके साथ ही ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे । कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि जब सुग्रीव जी बालि द्वारा राज से बाहर खदेड़ दिए गए थे और वे ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे थे उस समय हनुमानजी सुग्रीव जी के पास आए थे और सुग्रीव जी के मंत्री बन गए थे ।

 

   लेकिन श्रीवाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के अनुसार हनुमानजी किष्किन्धा में ही सुग्रीव जी के सचिव बन गए थे । हनुमानजी की बाल्यावस्था की उदंडता से परेशान होकर एक ऋषि ने हनुमानजी को शाप दे दिया था कि तुम अपना बल भूल जाओ । बाद में माता अंजना की प्रार्थना से और हनुमानजी द्वारा सम्पन्न होने वाले भविष्य के कार्य को देखकर ऋषि ने अपने शाप में संशोधन करते हुए कहा था कि जब कोई इनको इनके बल का स्मरण कराएगा तो ये अपने भूले हुए बल पराक्रम से युक्त हो जायेंगे । इस शाप के चलते हनुमानजी को अपने बल का स्मरण नहीं रहता था ।

 

   इसलिए जब बालि ने सुग्रीवजी को मारते हुए किष्किन्धा से बाहर खदेड़ दिया तो उस समय अपने बल का स्मरण न होने से हनुमानजी केवल देखते रह गए थे । सुग्रीव की कोई सहायता नहीं कर पाए थे ।

 

     इस प्रकार हनुमान जी सुग्रीव जी, जामवंत जी आदि के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर ही रहने लगे और अपने आराध्यदेव अग-जग के नायक भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगे ।

 

  एक दूसरी कथा के अनुसार हनुमान जी पहले अयोध्या जी में भगवान श्रीराम की सेवा में आ गए थे । और जब रामजी और लक्ष्मणजी ऋषि विश्वामित्र के साथ उनकी यज्ञ की रक्षा करने के लिए उनके साथ जाने लगे तब रामजी ने हनुमानजी को बिदा कर दिया और बोले अब तुम सुग्रीव के पास चले जाओ और वहीं मेरे आने की प्रतीक्षा करो । कुछ दिनों में मैं स्वयं चलकर तुम्हारे पास आ जाऊँगा । इस प्रकार हनुमानजी सुग्रीव जी के सचिव बन गए और भगवान श्रीराम के आने की प्रतीक्षा करने लगे ।

 


।। जय श्रीहनुमानजी ।।

Saturday, December 2, 2023

हनुमानजी द्वारा सूर्य देव को गुरू दक्षिणा

 

जैसा पिछले पोस्ट में बताया गया है सूर्य देव अपने रथ में बैठकर चलते रहते थे और हनुमान जी उनके सामने, उनकी ओर मुँह करके उसी वेग से पीठ की तरफ चलते जाते थे और पढ़ते जाते थे । इस प्रकार उदयाचल से अस्ताचल तक चलते हुए हनुमान जी ने सूर्य देव से सारी विद्याएँ सीख लिए ।

 

  इस प्रकार शिक्षा पूर्ण होने पर हनुमानजी सूर्य देव को प्रणाम करके गुरू दक्षिणा माँगने के लिए कहा । यह सनातन और भारत की प्राचीन परंपरा है कि शिक्षा पूर्ण होने पर शिष्य अपने गुरू को दक्षिणा देता है । और गुरू अपने शिष्य के सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा माँगता है ।

 

  सूर्य देव कोई साधारण गुरू तो हैं नहीं । और न ही सूर्य देव को किसी चीज की कमी है । फिर वे गुरू दक्षिणा के रूप में हनुमान जी से क्या लें ? फिर भी हनुमानजी द्वारा विनय पूर्वक आग्रह किए जाने पर सूर्य देव ने कहा कि बेटा हनुमान मेरा पुत्र सुग्रीव किष्किन्धा में रहता है । तुम उसके सचिव बन जाओ । और उसकी सहायता और रक्षा करो ।

 

 हनुमानजी ने सूर्य देव को इस गुरू दक्षिणा के लिए वचन देकर-प्रतिज्ञा करके सूर्य देव को साष्टांग प्रणाम करके और आशीर्वाद पाकर वापस गंधमादन पर्वत पर लौट आए । और अपने माता-पिता को प्रणाम किया । उनकी शिक्षा पूर्ण होने की खुशी में सुंदर उत्सव मनाया गया । और कुछ समय पश्चात हनुमानजी सुग्रीव की सेवा में चले गए ।

 


।। हनुमान जी महाराज की जय ।।

 

 

Friday, November 17, 2023

हनुमानजी की पढ़ाई- भानु से पढ़न हनुमान गए

 

हनुमानजी महाराज थोड़ा और बड़े हुए और इनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया । तब इनके लिए गुरू की आवश्यकता हुई । हनुमान जी महाराज किस आदर्श गुरू के पास विद्या अध्ययन के लिए जाएँ । भुवनभास्कर भगवान सूर्य जो सब शास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता हैं वे हनुमान जी को शिक्षा देने का आश्वासन दे चुके थे ।

                   

  माता अंजना ने कहा बेटा तुम उन्हीं के पास चले जाओ वे ही तुम्हारे योग्य गुरू हैं । माताजी ने हनुमानजी को उनके बल की याद दिलाई और हनुमान जी माता-पिता की आज्ञा से देखते ही देखते सूर्य देव के सामने पहुँच कर उनको प्रणाम करके अपने आने का अभिप्राय भी निवेदन कर दिया ।

 

  सूर्य देव ने सोचा कि ये बाल क्रीड़ा कर रहे हैं । इसलिए वे टालने का प्रयत्न करने लगे । गुरू और शिष्य शिक्षण के समय सामन्यतया आमने सामने बैठकर शिक्षा का आदान प्रदान करते हैं । यही प्राचीन परंपरा है । लेकिन सूर्य देव के पास ठहरने का समय ही नहीं । वे हमेशा चलते ही रहते हैं और वो भी बड़े वेग से । ऐसे में वे शिक्षण का कार्य कैसे कर सकते हैं ? शिक्षण के लिए तो ठहर कर शिक्षा देना चाहिए । सूर्य देव ने सारी परिस्थिति बता दी ।

 

  हनुमानजी बोले कोई बात नहीं है । आप मुझको पढाएं । मैं चलते हुए पढ़ता रहूँगा और प्रश्न भी पूछता रहूँगा । मैं आपके रथ के वेग से चलता रहूँगा । कोई समस्या नहीं आएगी । और न ही क्रम भंग होने पायेगा ।

 

   सूर्यदेव ने कहा पढ़ाई के समय आमने सामने होकर पढ़ना ही उत्तम होता है । इस समस्या का निराकरण कैसे होगा ? हनुमानजी बोले गुरुदेव आप अपने रथ पर बैठकर अपने वेग से चलते रहें । और मैं आपके सामने मुँह करके पीठ पीछे करके उसी वेग से समान दूरी बनाकर चलता रहूँगा ।

 

 सूर्य देव तैयार हो गए । प्रसन्न हो गए । उदयाचल से अस्ताचल तक सूर्यदेव की ओर मुँह करके चलते हुए हनुमानजी बालकों के खेल के समान पढ़ते हुए चलने लगे । हनुमान जी के पढ़ने में न कोई क्रम भंग होता था और न ही कोई भूल होती थी । इस प्रकार चलते हुए हनुमान जी ने व्याकरण, वेद, वेदांग, शास्त्र आदि सारी विद्याओं का अध्ययन कर लिया ।

 

  उस समय का द्रश्य बहुत अनोखा था । लोकपाल, शंकर जी, विष्णुजी, व्रह्मा जी आदि हर कोई हनुमान जी का साहस, उनका वेग, उनकी लगन, उनका धैर्य, उनका बल, उनका दृढ निश्चय आदि देखकर चकित था । सबकी आँखे चौंधिया सी गईं । सब लोगों के चित्त में यही भाव आ रहा था कि क्या स्वयं बल, आथवा स्वयं वीररस, अथवा स्वयं धैर्य, अथवा स्वयं साहस अथवा इन सबके समूह का सार ही साक्षात शरीर धारण करके आ गया है-

भानु सो पढ़न हनुमान गए भानु मन

                 अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो ।

पाछिले पगन गम गगन मगन मन,

                   क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।

कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि

                  लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो ।

बल  कैधों वीररस, धीरज के, साहस कै,

                 तुलसी शरीर धरे सबनि को सार सो ।।

 

 

।। बिद्यार्थी हनुमानजी की जय ।।

Sunday, October 1, 2023

क्या हनुमानजी बंदर थे- कस रे सठ हनुमान कपि

भगवान श्रीराम की सेवा करने के लिए व्रह्मा जी की आज्ञा से देवता लोग धरती पर वनचर देंह धारण करके आ गए- “वनचर देंह धरी छिति माही” । इस प्रकार हनुमान जी वनचर थे । कुछ लोग मूर्खता बस ऐसा कहते हैं कि हनुमान जी और रामजी की सेना के अन्य बानरों के पूँछ नहीं थी । क्योंकि वे बंदर नहीं थे । लेकिन ऐसा कहना, समझना, मानना और प्रचारित करना सही नहीं है बल्कि मूर्खता है ।

 

अंगदजी जब दूत बनकर लंका में रावण की सभा में गए तब अंगद जी ने रावण से पूछा- ‘कस रे सठ हनुमान कपि’ अर्थात अरे मूर्ख क्या हनुमान जी बंदर हैं ? इस प्रश्न को पूछने का मतलब यह नहीं है कि हनुमान जी बंदर नहीं है । इसका वास्तविक मतलब है कि रे मूर्ख क्या हनुमानजी साधारण बंदर हैं ? इस प्रकार हनुमान जी साधारण बंदर नहीं हैं । जैसे नदियों में गंगाजी साधारण नदी नहीं हैं 

 

  इसी तरह रामजी की सेना के सभी बंदर और भालू साधारण बंदर और भालू नहीं थे ।  लेकिन उनका आकार बंदर और भालू का ही था । और इसलिए उनके पूंछ भी थी ।

 

रामजी की सेना के बानरों और भालुओं का आकार बहुत बड़ा था, उनमें बल बहुत था तथा वे वानर और भालू के रूप में देवता थे । आजकल जैसे वानर और भालू हम लोग देखते हैं छोटे-छोटे वे सब इस तरह छोटे नहीं थे । लेकिन थे बंदर और भालू के ही रूप में ।

 अतः इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि रामजी की सेना के बंदरों और भालुओं में पूँछ थी अथवा नहीं थी । उन सबके पूँछ थी । इस प्रकार हनुमानजी के भी पूँछ थी । इतनी बात सत्य है कि वे सब साधरण बंदर और भालू नहीं थे । विशिष्ट बंदर और भालू थे । इस प्रकार हनुमानजी बंदर हैं लेकिन विशिष्ट बंदर हैं-


जय बजरंगबली गिरिधारी । विग्रह वानराकार पुरारी  ।।


 

।। हनुमानजी महाराज की जय ।।

Saturday, September 16, 2023

हनुमानजी द्वारा इंद्र, इंद्रवज्र और राहु आदि का मान भंग

 

हनुमानजी पालने में लेटे हुए थे  उन्होंने उगते हुए सूर्य को देखा ।  सूर्यदेव  बहुत ही आकर्षक लग रहे थे । हनुमानजी सूर्य देव की ओर बढ़ चले । हनुमानजी सूर्य के ताप से आहत न हों इसलिए पवन देव वर्फ के समान शीतल होकर हनुमानजी के साथ हो लिए ।

 

  इस दिन अमावस्या की तिथि थी । सूर्यग्रहण का दिन था । हनुमानजी सूर्यदेव के पास पहुँचकर सूर्यदेव को अपने मुख में रख लिया । इधर राहु सूर्य को अपना ग्रास बनाने आ रहा था । उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह कौन और कहाँ से आ गया है । इस धीर बीर बलवान को जन्म किसने दिया होगा ? जब हनुमानजी के आगे उसकी एक न चली तो वह भागकर इंद्र के पास पहुँचा । इधर तीनों लोकों में अँधियारी छा गई थी । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था –


बाल समय मुख धरेउ तमारी । छाई लोक सकल अँधियारी ।।  

 

 इंद्र राहु की सहायता करने के लिए आए । इंद्र ने हनुमानजी के ऊपर इंद्र वज्र से प्रहार किया । जो हनुमानजी की टोडी से टकराया । जिससे इंद्र के वज्र के दांत टूट गए । इस प्रकार इंद्र, इंद्र वज्र और राहु आदि का मान भंग हो गया-

 

देंह तुम्हारी वज्र समान । तोड्यो इंद्र वज्र का मान ।।  

 

  इंद्र की ऐसी धृष्टता देखकर पवन देव कुपित हो गए । सारे संसार को दुखी देखकर व्रह्मादि सभी देव गण पवनदेव और हनुमानजी की विनती करने लगे । और हनुमानजी को अनेकानेक वरदान देकर मनाने लगे । जिससे हनुमानजी ने सूर्य देव को छोड़ दिया और तीनों लोकों में फिर से उजियारी छा गई । सभी लोग सुखी हो गए-

देवन आनि करी विनती तब छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो ।

- संकटमोचन हनुमानाष्टक ।

विनय सुनत लखि लोक दुखारी । छाड़ेउ रवि फैली उजियारी ।।

- विनयावली ।

 

राहु जो सोच रहा था कि यह कौन और कहाँ से आ गया और इस धीर वीर बलवान को जन्म देने वाली माता कौन है ? उसे अब तक अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था –

 

अंजना को लाल लाल बाल रवि खायो है ।

सोचै मन राहू ऐसो कौन वीर जायो है ।।१।। 

 

रवि बिनु तिहुँपुर घोर तम छायो है ।

सुर मुनि काहू कछु समझ न आयो है ।।२।।

 

एको जब नाहिं चली जाइ गोहरायो है ।

चलेउ सुरेश सब बहु घबरायो है ।।३।।

 

कुलिश को दाँत मान गयो चलायो है ।

टूट्यो नहीं हनु हनुमान जग छायो है ।।४।।

 

सुर सब विधि संग विनय सुनायो है ।

वर देय देय पवन-पूत रिझायो है ।।५।।

 

दीन संतोष फिरि जग सुख छायो है ।

महावीर बलवान अंजना को जायो है ।।६।।

 

।। वज्रांगबली हनुमानजी की जय ।।

 

Tuesday, August 15, 2023

हनुमानजी का जन्म और दिव्यता - हनुमानजी जन्म के समय ही स्वर्ण कुंडल और जनेऊ आदि धारण किए हुए थे

                                                              । श्रीहनुमते नमः  


जैसे भगवान कहते हैं कि मेरा जन्म और कर्म दोनों दिव्य होता है । अर्थात भगवान का जन्म और उनका कर्म-चरित्र साधरण नहीं होता । इसी तरह से हनुमान जी का जन्म भी साधारण नहीं था । परम दिव्य था ।

 

  भगवान श्रीराम के भुवन विमोहनि महाछवि निहारते रहने के लिए और भगवान श्रीराम के चरणों की अनुपम सेवा करने के लिए शंकर जी ने विचार किया और वानर के रूप में माता अंजना के गर्भ से प्रगट हुए और अपने जीवन को धन्य किया -


सेवक बनि सेवा करि रहिहौं निज मन शंभु विचार किए ।

अंजना सुवन केसरीनंदन पवनतनय बनि आइ गए ।१।।

राम से नेह निभावन कारन वानर बनि शिव आइ जए ।

राम को काज सवाँरन कारन शिवशंकर हनुमान भए ।।२

राम को वदन निहारत हनुमद राम चरण अनुराग लिए ।

सेवक अस न तिहूँपुर कोई काल तीन अनुमान किए ।।३

राम चरित अरु राम नाम रूचि राम प्रेम जनु देंह लिए 

दीन संतोष सुर नर मुनि स्वामी हनुमद पाइ निहाल भए ।।४।।

 

 हनुमान जी जब प्रगट हुए उस समय वन, उपवन, वाग, वाटिकाओं में सुंदर-सुंदर पुष्प खिल उठे । वायु मंद गति से चलने लगी । सूर्य देव की किरणें अधिक ताप लिए हुए नहीं थीं अर्थात शीतल और सुखद थीं । प्रकृति रम्यता लिए हुए थी । दिशाएं प्रसन्न थीं । झरने झर रहे थे और नदियों में शीतल जल प्रवाहित हो रहा था ।

 

  हनुमानजी का सौंदर्य अतुलनीय और अवर्णनीय था । हनुमान जी के रोम, केश और आँख पिंगल वर्ण की थी । उनके शरीर की कांति भी पिंगल वर्ण की थी । हनुमानजी के दोनों कानों में बिजली की सी चमक वाले दो स्वर्ण कुंडल शोभित हो रहे थे । अर्थात हनुमानजी जब प्रगट हुए तो स्वर्ण कुंडल पहने हुए थे ।

 

  हनुमानजी के मस्तक पर मणि निर्मित मुकुट था । कौपीन और काछनी पहने हुए थे । वे यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे । हाथ में वज्र शोभा पा रहा था । उनके कटि प्रदेश में मूँज की मेखला शोभा पा रही थी । और वे मंद-मंद मुस्करा रहे थे ।

 

 अपने पुत्र के अलौकिक रूप-सौंदर्य को देखकर माता अंजना आनंदित हो रही थीं । कपिराज केसरी के आनंद की सीमा न रही । चारों ओर हर्ष और उल्लास की लहरें दौड़ पड़ीं । इस प्रकार हनुमानजी का जन्म साधारण नहीं परम दिव्य था ।

 


।। जय हनुमान जी की ।। 

Tuesday, August 1, 2023

हनुमानजी का जन्म - हर ते भे हनुमान

                         । श्रीहनुमते नमः । 


वानर राज केसरी और अंजना जी के कोई संतान नहीं थी । अंजना जी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थीं । इधर अयोध्या के परम प्रतापी राजा महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करा रहे थे । यज्ञ सकुशल सम्पन्न हुआ और अग्नि देव खीर का प्रसाद लेकर प्रगट हुए ।

 

खीर का जो भाग कैकेयी जी को मिला उसे अचानक एक चील नामक पक्षी दोने सहित अपने पैरों के माध्यम से पकड़कर आकाश में उड़ गया । उड़ते-उड़ते वह उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंजना जी तपस्या कर रही थीं । इतने में अचानक पवन का झोका आया और खीर का दोना चील पक्षी की पकड़ से छूट गया । उस दोने को पवन देव ने अंजना जी के हाथ में पहुँचा दिया ।

 

इसे पवन देवता का प्रसाद समझकर अंजना जी ने ग्रहण कर लिया । इस प्रकार शिव रूप हनुमान जी अंजना जी के गर्भ में आ गए । समय आने पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन अंजना के गर्भ से भगवान शंकर ने वानर रूप में अवतार लिया । माता अंजना और कपिराज केसरी के आनंद की सीमा न रही । दशों दिशाओं में आनंद छा गया । दुन्दिभियाँ बजने लगी । मंगल गीत गाए जाने लगे । 


  एक मत के अनुसार हनुमान जी का जन्म शनिवार को हुआ था, ऐसा भी कहा जाता है ।  कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है । कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है ।  अलग-अलग तिथियों का कारण कल्प भेद मानना चाहिए ।  क्योंकि हनुमान जी का जन्म प्रत्येक कल्प में एक बार होता है । कुछ लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ज्यादा प्रमाणिक बताते हैं 


इस प्रकार देवाधिदेव महादेव स्वयं रामजी का सेवक बनने के लिए और न भूतो न भविष्यति सेवा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हर से हनुमान बन गए-

 

जानि राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान ।

पुरुषा से सेवक भए, हर ते भे हनुमान ।।

 


।। वानर रूप में पुरारी की जय ।।


Saturday, July 29, 2023

हनुमानजी के जन्म की भूमिका- रूद्र देंह तजि नेह बस, वानर भे हनुमान

 

                । श्रीहनुमते नमः । 


जब यह निश्चित हो गया कि भगवान श्रीराम अयोध्याजी में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र रूप में अवतरित होंगे तब व्रह्मा जी की आज्ञा से देवता लोग वानर और भालु जैसे शरीर धारण करके धरती पर छा गए ।

 

 भगवान शंकर भगवान के अनन्य भक्त हैं । भगवान की सेवा करने के लिए शंकरजी ने अपने को वानर रूप में प्रगट करने की योजना बनाई । भगवान स्वयं मनुष्य रूप में अवतरित होने वाले थे इसलिए शंकरजी मनुष्य से इतर वानर रूप में आने का निश्चय किया ।

 

 शंकर जी का मुख्य उद्देश्य था भगवान की सेवा करना और शंकर जी ने सोचा कि सेवा तो वानर रूप में जाकर ही बनेगी । क्योंकि स्वामी स्वयं मनुष्य रूप में रहेंगे तो उनके समकक्ष न होकर मनुष्य से थोड़ी छोटी समझी जाने वाली वानर योनि में जन्म लेकर न भूतो न भविष्यति सेवा करूँगा । और शंकर जी ने ऐसा ही किया ।

 

  इस प्रकार भगवान श्रीराम के स्नेह बस शंकर जी ने वानर बनकर रामजी की सेवा करने का निश्चय किया-

 

जेहि शरीर रति राम से, सो आदरहिं सुजान ।

रूद्र देंह तजि नेह बस, वानर भे हनुमान ।।


 

।। हनुमानजी महाराज की जय ।।

 

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श्रीहनुमान जयंती विशेष- बाँके कपि केसरी अंजना के लाल हो

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