( भगवान श्रीराम का हनुमानजी को उपदेश )
भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने अपने उपदेश को जारि रखते हुए कहा- ‘हनुमन
! अव्यक्त परमात्मा से काल, प्रधान नामक तत्व और परमपुरुष इन तीनों की उत्पत्ति
हुई है । इन तीनों से ही यह संपूर्ण जगत उत्पन्न हुआ है इसलिए संपूर्ण जगत मैं ही
हूँ ।
परब्रह्म परमात्मा के सब ओर हाथ-पैर हैं । उनके नेत्र,
मस्तिष्क और मुख भी सब ओर है । उनके कान भी सब ओर है । वे लोक में सबको व्याप्त
करके स्थित हैं । वे संपूर्ण इन्द्रियों के गुणों को प्रकाशित करने वाले हैं,
तथापि समस्त इन्द्रियों से रहित हैं । वे सबके आधार हैं । उनका आनंद स्थिर है । वे
अव्यक्त हैं । उनमें द्वैत का अभाव है । वे संपूर्ण उपमाओं से रहित और प्रमाणों के
अगोचर हैं ।
निर्विकल्प, निराभास,
सबके प्रकाशक तथा परम अमृत-स्वरूप हैं । उनमें भेद का सर्वथा अभाव है । तथापि वे
भिन्न-भिन्न शरीर धारण करते हैं । सनातन, ध्रुव और अविनाशी हैं । वे निर्गुण, परम
व्योमस्वरूप तथा ज्ञानमय हैं, विद्वान पुरुष उन्हें इसी रूप में जानते हैं । वे ही
संपूर्ण भूतों के आत्मा हैं । वाह्य और आभ्यंतर सभी पदार्थों से परे हैं । वह
सर्वत्र व्यापक, शांत स्वरूप ज्ञानात्मा परमेश्वर मैं ही हूँ – ‘सोऽहं सर्वत्रगः
शान्तो ज्ञानात्मा परमेश्वरः’ ।
मुझ अव्यक्त स्वरूप
परमेश्वर ने इस संपूर्ण विश्व को व्याप्त कर रक्खा है । संपूर्ण भूत मुझमें ही
स्थित हैं । इस प्रकार जो मुझ परमात्मा को जानता है, वही वेदवेत्ता है ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।
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