हनुमानजी पालने में लेटे हुए थे । उन्होंने उगते हुए सूर्य
को देखा । सूर्यदेव बहुत ही आकर्षक लग रहे थे । हनुमानजी सूर्य देव
की ओर बढ़ चले । हनुमानजी सूर्य के ताप से आहत न हों
इसलिए पवन देव वर्फ के समान शीतल होकर हनुमानजी के साथ हो लिए ।
इस दिन अमावस्या की तिथि थी । सूर्यग्रहण का दिन था । हनुमानजी सूर्यदेव के पास पहुँचकर सूर्यदेव को अपने मुख में रख लिया । इधर राहु सूर्य को अपना ग्रास बनाने आ रहा था । उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह कौन और कहाँ से आ गया है । इस धीर बीर बलवान को जन्म किसने दिया होगा ? जब हनुमानजी के आगे उसकी एक न चली तो वह भागकर इंद्र के पास पहुँचा । इधर तीनों लोकों में अँधियारी छा गई थी । किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था –
बाल समय मुख धरेउ तमारी । छाई लोक सकल अँधियारी ।।
इंद्र राहु की सहायता करने के लिए आए । इंद्र ने
हनुमानजी के ऊपर इंद्र वज्र से प्रहार किया । जो हनुमानजी की टोडी से टकराया ।
जिससे इंद्र के वज्र के दांत टूट गए । इस प्रकार इंद्र, इंद्र वज्र और राहु आदि का
मान भंग हो गया-
देंह तुम्हारी वज्र समान । तोड्यो इंद्र वज्र का मान ।।
इंद्र की ऐसी
धृष्टता देखकर पवन देव कुपित हो गए । सारे संसार को दुखी देखकर व्रह्मादि सभी देव
गण पवनदेव और हनुमानजी की विनती करने लगे । और हनुमानजी को अनेकानेक वरदान देकर
मनाने लगे । जिससे हनुमानजी ने सूर्य देव को छोड़ दिया और तीनों लोकों में फिर से
उजियारी छा गई । सभी लोग सुखी हो गए-
देवन आनि करी विनती तब छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो ।
- संकटमोचन हनुमानाष्टक ।
विनय सुनत लखि लोक दुखारी । छाड़ेउ रवि फैली उजियारी ।।
- विनयावली ।
राहु जो सोच रहा था कि यह कौन और कहाँ से आ गया और इस धीर वीर बलवान
को जन्म देने वाली माता कौन है ? उसे अब तक अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था –
अंजना को लाल लाल बाल रवि खायो है ।
सोचै मन राहू ऐसो कौन वीर जायो है ।।१।।
रवि बिनु तिहुँपुर घोर तम छायो है ।
सुर मुनि काहू कछु समझ न आयो है ।।२।।
एको जब नाहिं चली जाइ गोहरायो है ।
चलेउ सुरेश सब बहु घबरायो है ।।३।।
कुलिश को दाँत मान गयो चलायो है ।
टूट्यो नहीं हनु हनुमान जग छायो है ।।४।।
सुर सब विधि संग विनय सुनायो है ।
वर देय देय पवन-पूत रिझायो है ।।५।।
दीन संतोष फिरि जग सुख छायो है ।
महावीर बलवान अंजना को जायो है ।।६।।
।। वज्रांगबली हनुमानजी
की जय ।।
No comments:
Post a Comment