राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Tuesday, January 16, 2024

भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजी को देखकर सुग्रीव का शंकित होकर हनुमानजी को भेद जानने के लिए भेजना

 

भगवान श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ सीता जी की खोज करते हुए सर, सरिता, गिर आदि को पार करते हुए आगे बढ़ रहे थे । आगे चलने पर दोनों भाई ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुँच गए-

   आगे चले बहुरि रघुराया । ऋष्यमूक पर्वत नियराया ।।

 

 इसी ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव जी अपने सचिवों के साथ रहते थे । मतंग मुनि के शाप के कारण बालि ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं आ सकता था । फिर भी सुग्रीव जी भयभीत रहते थे । क्योंकि बालि अपने शत्रुओं का पीछा छोड़ता नहीं था । इसलिए सुग्रीव जी को इस बात की चिंता रहती थी कि भले ही बालि स्वयं यहाँ नहीं आ सकता लेकिन किसी दूसरे को भेज कर वध करा सकता है ।

 

  रामजी और लक्ष्मण जी भले ही तपस्वी वेश में थे । लेकिन उनके शरीर से, उनके तेज से  वीरता झलकती थी । और वे धनुष वाण भी धारण किए हुए थे । इसलिए उनको देखकर सुग्रीव के मन में शंका हो गई कि हो न हो ये बालि के भेजे हुए हों । क्योंकि ये वीर भी हैं, इनके धनुष और वाण भी है और ये इसी ओर आ रहे हैं ।

 

   रामजी और लक्ष्मण जी के रूप, तेज और प्रभाव से सुग्रीव जी चकित होकर सोच रहे थे कि इनको युद्ध में जीता नहीं जा सकता है । इसलिए इनका भेद जान लेना चाहिए कि ये कौन हैं, कहाँ से आएँ हैं और इनके यहाँ आने का प्रयोजन क्या है ? यदि ये सही में बालि के द्वारा भेजे हुए हों तो यहाँ से भाग जाना ही उचित है ।

 

 हनुमान जी महाराज धीर, वीर, और बड़े बुद्धिमान हैं । और सुग्रीव जी के विश्वसनीय और प्रिय हैं । इसलिए सुग्रीव जी ने हनुमान जी को रामजी और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए कहा । और सुग्रीव की शंका तथा उन्हें भयभीत देखकर हनुमानजी रामजी और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए चल दिए-

   

सिया को खोजत राम लखन जब ऋष्यमूक पर्वत नियराए

देखत बलबीरा दोउ रनधीरा कपि सुग्रीव बहुत घबराए ।।

आवत केहि काजा दो नरराजा सोचत चित कहुँ थित नहि पाए ।

सुनु हनुमाना अति मतिवाना दोउ वर बीर कहाँ ते आए  ।।

देखो तुम जाई कहौ बुझाई, भागौं जो ये बालि पठाए ।

सबको जानैं को नहिं जानै तेहिं जानन चले आप दुराए ।।

 

।। श्रीहनुमानजी महाराज की जय ।।

   

Tuesday, January 2, 2024

हनुमानजी का सुग्रीवजी को ऋष्यमूक पर्वत पर बसने का सुझाव देना

 

हनुमानजी महाराज किष्किन्धा में रहने लगे । सभी लोग इनकी, प्रतिभा, बुद्धिमत्ता, इनके ज्ञान विज्ञान से प्रभावित थे । बालि स्वयं हनुमानजी को अपने साथ रखना चाहता था-अपना सुहृद बनाना चाहता था । लेकिन हनुमान जी सुग्रीव जी के सुहृद बन गए ।

  बालि सुग्रीव जी को मारने के लिए सुग्रीव जी का पीछा कर रहा था और सुग्रीव जी नदी-पर्वत आदि को लाँघते हुए भाग रहे थे । बालि पीछा छोड़ नहीं रहा था । सुग्रीव जी के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ? कहाँ जाएँ ? समुंद्र पर्यन्त सारी धरती पर  भागते रहे लेकिन कहीं ठौर न मिला ।

 

  जब बालि ने दुन्दुभि राक्षस का वध किया था और उसके मृत शरीर को उठाकर फेंका था तो रक्त की कुछ बूँदे मतंग मुनि के आश्रम के पास जा गिरी थीं । जिससे कुपित होकर मुनि ने बालि को शाप दे दिया था कि बालि यदि इस क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो उसकी मृत्यु हो जायेगी । यह सब सुग्रीव जी को पता था । लेकिन इस समस्या के समय उन्हें यह सब याद ही नहीं रह गया था । और इसलिए वे भागे जा रहे थे ।

 

   हनुमानजी महाराज ने सुग्रीव जी को याद दिलाया कि इस समय बालि से बचने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान मतंग मुनि के शाप के कारण ऋष्यमूक पर्वत ही है । यह सुनकर सुग्रीव जी ऋष्यमूक पर्वत पर आ गए और बालि लौट गया ।

 

  इस प्रकार हनुमान जी महाराज के सुझाव पर सुग्रीव जी ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे । और उनके सुहृद जन उनके सचिव बनकर उनका मनोबल बढ़ाने लगे । हनुमान जी पर सुग्रीव जी को अधिक विश्वास था और उनसे ही अधिक आशा थी ।  निराशा की बड़ी बिकट घड़ी में हनुमानजी सुग्रीव जी के लिए आशा की एक बड़ी किरण बनकर सुग्रीव के उत्साह और मनोबल को बढ़ाते हुए असरण सरण रघुकुल भूषण भगवान श्रीरामचंद्र जी के एक दिन स्वयं चलकर आने की बाट जोहने लगे ।

 


।। जय हनुमान जी ।।

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