( भगवान श्रीराम का हनुमानजी को उपदेश )
हनुमान जी ने राम जी से पूछा कि आप कौन हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में रामजी
ने अपना विराट स्वरूप प्रगट कर दिया । हनुमानजी ने भगवान के विराट स्वरूप का दर्शन करके चकित होकर फिर से पूछा कि ‘प्रभु आप कौन हैं ’ ?
जब चकित होकर हनुमानजी ने फिर से
पूछा कि ‘प्रभु आप कौन हैं’ तो राम जी
ने जो परिचय दिया वह बहुत ही उत्तम है । यह उपदेश श्रीराम गीता है । और बहुत गोपनीय है
। भगवान श्रीराम अपने निर्गुण-सगुण, उभयात्मक, सर्वेश्वर स्वरूप का परिचय देते हुए
बोले-
विराट रूप तब राम देखावा ।
देखत मन विस्मय अति छावा ।।
पुरुष पुराण राम रघुनायक ।
परमोदार सकल जग नायक ।।
मधुर बचन बोलेउ रघुराया ।
सुनत नसाहिं मोह मद माया ।।
वत्स वत्स कह कृपानिधाना ।
मोर भगत तुम कपि हनुमाना ।।
पूछेहुँ मोहि सोउ कहउँ
बुझाई । सावधान सुनु मन मति लाई ।।
निर्गुण सगुण उभयात्मक रूपा ।
कहन लगे प्रभु आप सरूपा ।।
सर्वात्मक सर्वेश्वर रामा ।
सर्वशासक परात्पर परधामा ।।
सनातन गोप्य आत्म विज्ञाना
। सब सन नहिं येहि केरि बखाना ।।
द्विजवर देव जतन नित करहीं । समुचित ज्ञान तदपि नहिं लहहीं ।।
आश्रय लहि यह ज्ञान सुजाना । व्रह्मभूत भए भूसुर नाना ।।
प्रथम भए व्रह्मवादी नाना ।
मिथ्या यह संसार बखाना ।।
गोपनीय ते गोप्य सुहाई । गोप्य रखय यह जतन बनाई ।।
जो यह ज्ञान धरे मन लाई । भक्तिमान ते लोग कहाई ।।
तेहि कुल होहिं पुरुष व्रह्मवादी । स्वछ शांति अरु सूक्ष्म अनादी ।।
आत्मा के स्वरूप का निरूपण करते हुए भगवान श्रीराम कहते हैं कि यह आत्मा का गोपनीय विज्ञान सनातन है । इस ज्ञान को सबके सामने नहीं कहना चाहिए । देवता और श्रेष्ठ द्विज सदा यत्न करते रहने पर भी इस ज्ञान को ठीक-ठीक नहीं जान पाते हैं । इस ज्ञान का आश्रय लेकर बहुत से व्राह्मण व्रह्मभूत हो गए हैं । पहले के व्रह्म्वादी महापुरुष भी संसार को सत्य रूप में नहीं देखते थे । यह ज्ञान गोपनीय से भी अत्यंत गोपनीय है । इसे प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए ।
जो इस ज्ञान को धारण करते हैं वे भक्तिमान हैं । ऐसे भक्तिमान पुरुषों के कुल में व्रह्म्वादी पुरुष जन्म ग्रहण करते हैं । आत्मा अद्वितीय, स्वच्छ, शन्ति, सूक्ष्म एवं सनातन है । आत्मा सबका अन्तर्यामी साक्षात चिन्मय तथा अज्ञान रुपी अंधकार से परे है ।
।। जय श्री हनुमानजी की ।।
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