राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Friday, March 8, 2024

श्रीराम गीता-भाग एक- भगवान श्रीराम का हनुमानजी को विराट रूप दिखाना और सांख्ययोग का उपदेश -१

  ( भगवान श्रीराम का हनुमानजी को उपदेश )


हनुमान जी ने राम जी से पूछा कि आप कौन हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में रामजी ने अपना विराट स्वरूप प्रगट कर दिया । हनुमानजी ने भगवान के  विराट स्वरूप का दर्शन करके चकित होकर फिर से पूछा कि प्रभु आप कौन हैं ’ ?

 

   जब चकित होकर हनुमानजी ने फिर से पूछा कि प्रभु आप कौन हैंतो राम जी ने जो परिचय दिया वह बहुत ही उत्तम है । यह उपदेश श्रीराम गीता है । और बहुत गोपनीय है । भगवान श्रीराम अपने निर्गुण-सगुण, उभयात्मक, सर्वेश्वर स्वरूप का परिचय देते हुए बोले-


   विराट रूप तब राम देखावा । देखत मन विस्मय अति छावा ।।

    पुरुष पुराण राम रघुनायक । परमोदार सकल जग नायक ।।

    मधुर बचन बोलेउ रघुराया । सुनत नसाहिं मोह मद माया ।।

  वत्स वत्स कह कृपानिधाना । मोर भगत तुम कपि हनुमाना ।।

  पूछेहुँ मोहि सोउ कहउँ बुझाई । सावधान सुनु मन मति लाई ।।

 निर्गुण सगुण उभयात्मक रूपा । कहन लगे प्रभु आप सरूपा ।।

 सर्वात्मक सर्वेश्वर रामा । सर्वशासक परात्पर परधामा ।।

  सनातन गोप्य आत्म विज्ञाना । सब सन नहिं येहि केरि बखाना ।।

द्विजवर देव जतन नित करहीं । समुचित ज्ञान तदपि नहिं लहहीं ।।

आश्रय लहि यह ज्ञान सुजाना । व्रह्मभूत भए भूसुर नाना ।।

प्रथम भए व्रह्मवादी  नाना । मिथ्या यह संसार बखाना ।।

गोपनीय ते गोप्य सुहाई । गोप्य रखय यह जतन बनाई ।।

जो यह ज्ञान धरे मन लाई । भक्तिमान ते लोग कहाई ।।

तेहि कुल होहिं पुरुष व्रह्मवादी । स्वछ शांति अरु सूक्ष्म अनादी ।।

आत्मा तम अज्ञान न जामी   । चिन्मय केवल अंतरयामी 

 

  पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने हनुमानजी से कहा वत्स, वत्स हनुमान तुम मेरे भक्त हो ।  तुमने मुझसे जो पूछा है वह सब मैं तुम्हें बता रहा हूँ । सावधान होकर सुनो । 


  आत्मा के स्वरूप का निरूपण करते हुए भगवान श्रीराम कहते हैं कि यह आत्मा का गोपनीय विज्ञान  सनातन है । इस ज्ञान को सबके सामने नहीं कहना चाहिए । देवता और श्रेष्ठ द्विज सदा यत्न करते रहने पर भी इस ज्ञान को ठीक-ठीक नहीं जान पाते हैं । इस ज्ञान का आश्रय लेकर बहुत से व्राह्मण व्रह्मभूत हो गए हैं । पहले के व्रह्म्वादी महापुरुष भी संसार को सत्य रूप में नहीं देखते थे । यह ज्ञान गोपनीय से भी अत्यंत गोपनीय है । इसे प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए 


  जो इस ज्ञान को धारण करते हैं वे भक्तिमान हैं । ऐसे भक्तिमान पुरुषों के कुल में व्रह्म्वादी पुरुष जन्म ग्रहण करते हैं । आत्मा अद्वितीय, स्वच्छ, शन्ति, सूक्ष्म एवं सनातन है । आत्मा सबका अन्तर्यामी साक्षात चिन्मय तथा अज्ञान रुपी अंधकार से परे है 

 

। जय श्री हनुमानजी की 

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