राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Tuesday, August 1, 2023

हनुमानजी का जन्म - हर ते भे हनुमान

                         । श्रीहनुमते नमः । 


वानर राज केसरी और अंजना जी के कोई संतान नहीं थी । अंजना जी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थीं । इधर अयोध्या के परम प्रतापी राजा महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करा रहे थे । यज्ञ सकुशल सम्पन्न हुआ और अग्नि देव खीर का प्रसाद लेकर प्रगट हुए ।

 

खीर का जो भाग कैकेयी जी को मिला उसे अचानक एक चील नामक पक्षी दोने सहित अपने पैरों के माध्यम से पकड़कर आकाश में उड़ गया । उड़ते-उड़ते वह उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंजना जी तपस्या कर रही थीं । इतने में अचानक पवन का झोका आया और खीर का दोना चील पक्षी की पकड़ से छूट गया । उस दोने को पवन देव ने अंजना जी के हाथ में पहुँचा दिया ।

 

इसे पवन देवता का प्रसाद समझकर अंजना जी ने ग्रहण कर लिया । इस प्रकार शिव रूप हनुमान जी अंजना जी के गर्भ में आ गए । समय आने पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन अंजना के गर्भ से भगवान शंकर ने वानर रूप में अवतार लिया । माता अंजना और कपिराज केसरी के आनंद की सीमा न रही । दशों दिशाओं में आनंद छा गया । दुन्दिभियाँ बजने लगी । मंगल गीत गाए जाने लगे । 


  एक मत के अनुसार हनुमान जी का जन्म शनिवार को हुआ था, ऐसा भी कहा जाता है ।  कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है । कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है ।  अलग-अलग तिथियों का कारण कल्प भेद मानना चाहिए ।  क्योंकि हनुमान जी का जन्म प्रत्येक कल्प में एक बार होता है । कुछ लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ज्यादा प्रमाणिक बताते हैं 


इस प्रकार देवाधिदेव महादेव स्वयं रामजी का सेवक बनने के लिए और न भूतो न भविष्यति सेवा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हर से हनुमान बन गए-

 

जानि राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान ।

पुरुषा से सेवक भए, हर ते भे हनुमान ।।

 


।। वानर रूप में पुरारी की जय ।।


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