राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Tuesday, August 15, 2023

हनुमानजी का जन्म और दिव्यता - हनुमानजी जन्म के समय ही स्वर्ण कुंडल और जनेऊ आदि धारण किए हुए थे

                                                              । श्रीहनुमते नमः  


जैसे भगवान कहते हैं कि मेरा जन्म और कर्म दोनों दिव्य होता है । अर्थात भगवान का जन्म और उनका कर्म-चरित्र साधरण नहीं होता । इसी तरह से हनुमान जी का जन्म भी साधारण नहीं था । परम दिव्य था ।

 

  भगवान श्रीराम के भुवन विमोहनि महाछवि निहारते रहने के लिए और भगवान श्रीराम के चरणों की अनुपम सेवा करने के लिए शंकर जी ने विचार किया और वानर के रूप में माता अंजना के गर्भ से प्रगट हुए और अपने जीवन को धन्य किया -


सेवक बनि सेवा करि रहिहौं निज मन शंभु विचार किए ।

अंजना सुवन केसरीनंदन पवनतनय बनि आइ गए ।१।।

राम से नेह निभावन कारन वानर बनि शिव आइ जए ।

राम को काज सवाँरन कारन शिवशंकर हनुमान भए ।।२

राम को वदन निहारत हनुमद राम चरण अनुराग लिए ।

सेवक अस न तिहूँपुर कोई काल तीन अनुमान किए ।।३

राम चरित अरु राम नाम रूचि राम प्रेम जनु देंह लिए 

दीन संतोष सुर नर मुनि स्वामी हनुमद पाइ निहाल भए ।।४।।

 

 हनुमान जी जब प्रगट हुए उस समय वन, उपवन, वाग, वाटिकाओं में सुंदर-सुंदर पुष्प खिल उठे । वायु मंद गति से चलने लगी । सूर्य देव की किरणें अधिक ताप लिए हुए नहीं थीं अर्थात शीतल और सुखद थीं । प्रकृति रम्यता लिए हुए थी । दिशाएं प्रसन्न थीं । झरने झर रहे थे और नदियों में शीतल जल प्रवाहित हो रहा था ।

 

  हनुमानजी का सौंदर्य अतुलनीय और अवर्णनीय था । हनुमान जी के रोम, केश और आँख पिंगल वर्ण की थी । उनके शरीर की कांति भी पिंगल वर्ण की थी । हनुमानजी के दोनों कानों में बिजली की सी चमक वाले दो स्वर्ण कुंडल शोभित हो रहे थे । अर्थात हनुमानजी जब प्रगट हुए तो स्वर्ण कुंडल पहने हुए थे ।

 

  हनुमानजी के मस्तक पर मणि निर्मित मुकुट था । कौपीन और काछनी पहने हुए थे । वे यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे । हाथ में वज्र शोभा पा रहा था । उनके कटि प्रदेश में मूँज की मेखला शोभा पा रही थी । और वे मंद-मंद मुस्करा रहे थे ।

 

 अपने पुत्र के अलौकिक रूप-सौंदर्य को देखकर माता अंजना आनंदित हो रही थीं । कपिराज केसरी के आनंद की सीमा न रही । चारों ओर हर्ष और उल्लास की लहरें दौड़ पड़ीं । इस प्रकार हनुमानजी का जन्म साधारण नहीं परम दिव्य था ।

 


।। जय हनुमान जी की ।। 

Tuesday, August 1, 2023

हनुमानजी का जन्म - हर ते भे हनुमान

                         । श्रीहनुमते नमः । 


वानर राज केसरी और अंजना जी के कोई संतान नहीं थी । अंजना जी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थीं । इधर अयोध्या के परम प्रतापी राजा महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करा रहे थे । यज्ञ सकुशल सम्पन्न हुआ और अग्नि देव खीर का प्रसाद लेकर प्रगट हुए ।

 

खीर का जो भाग कैकेयी जी को मिला उसे अचानक एक चील नामक पक्षी दोने सहित अपने पैरों के माध्यम से पकड़कर आकाश में उड़ गया । उड़ते-उड़ते वह उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंजना जी तपस्या कर रही थीं । इतने में अचानक पवन का झोका आया और खीर का दोना चील पक्षी की पकड़ से छूट गया । उस दोने को पवन देव ने अंजना जी के हाथ में पहुँचा दिया ।

 

इसे पवन देवता का प्रसाद समझकर अंजना जी ने ग्रहण कर लिया । इस प्रकार शिव रूप हनुमान जी अंजना जी के गर्भ में आ गए । समय आने पर चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मंगलवार के दिन अंजना के गर्भ से भगवान शंकर ने वानर रूप में अवतार लिया । माता अंजना और कपिराज केसरी के आनंद की सीमा न रही । दशों दिशाओं में आनंद छा गया । दुन्दिभियाँ बजने लगी । मंगल गीत गाए जाने लगे । 


  एक मत के अनुसार हनुमान जी का जन्म शनिवार को हुआ था, ऐसा भी कहा जाता है ।  कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है । कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को भी हनुमान जी का जन्म मनाया जाता है ।  अलग-अलग तिथियों का कारण कल्प भेद मानना चाहिए ।  क्योंकि हनुमान जी का जन्म प्रत्येक कल्प में एक बार होता है । कुछ लोग कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ज्यादा प्रमाणिक बताते हैं 


इस प्रकार देवाधिदेव महादेव स्वयं रामजी का सेवक बनने के लिए और न भूतो न भविष्यति सेवा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हर से हनुमान बन गए-

 

जानि राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान ।

पुरुषा से सेवक भए, हर ते भे हनुमान ।।

 


।। वानर रूप में पुरारी की जय ।।


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