भगवान श्रीराम की सेवा करने के लिए व्रह्मा जी की
आज्ञा से देवता लोग धरती पर वनचर देंह धारण करके आ गए- “वनचर देंह धरी छिति माही” । इस
प्रकार हनुमान जी वनचर थे । कुछ लोग मूर्खता बस ऐसा कहते हैं कि हनुमान जी और रामजी
की सेना के अन्य बानरों के पूँछ नहीं थी । क्योंकि वे बंदर नहीं थे । लेकिन ऐसा कहना, समझना,
मानना और प्रचारित करना सही नहीं है बल्कि मूर्खता है ।
अंगदजी जब दूत बनकर लंका में रावण की सभा में गए तब अंगद जी ने रावण से पूछा- ‘कस रे सठ हनुमान कपि’ अर्थात अरे मूर्ख क्या हनुमान जी बंदर हैं ? इस प्रश्न को पूछने का मतलब यह नहीं है कि हनुमान जी बंदर नहीं है । इसका वास्तविक मतलब है कि रे मूर्ख क्या हनुमानजी साधारण बंदर हैं ? इस प्रकार हनुमान जी साधारण बंदर नहीं हैं । जैसे नदियों में गंगाजी साधारण नदी नहीं हैं ।
इसी तरह रामजी की सेना के सभी बंदर और भालू
साधारण बंदर और भालू नहीं थे । लेकिन उनका
आकार बंदर और भालू का ही था । और इसलिए उनके पूंछ भी थी ।
रामजी की सेना
के बानरों और भालुओं का आकार बहुत बड़ा था, उनमें बल बहुत था तथा वे वानर और भालू
के रूप में देवता थे । आजकल जैसे वानर और भालू हम लोग देखते हैं छोटे-छोटे वे सब
इस तरह छोटे नहीं थे । लेकिन थे बंदर और भालू के ही रूप में ।
अतः इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि रामजी की सेना के बंदरों और भालुओं में पूँछ थी अथवा नहीं थी । उन सबके पूँछ थी । इस प्रकार हनुमानजी के भी पूँछ थी । इतनी बात सत्य है कि वे सब साधरण बंदर और भालू नहीं थे । विशिष्ट बंदर और भालू थे । इस प्रकार हनुमानजी बंदर हैं लेकिन विशिष्ट बंदर हैं-
जय बजरंगबली
गिरिधारी । विग्रह वानराकार पुरारी ।।
।। हनुमानजी महाराज की जय ।।
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