राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Tuesday, July 1, 2025

सुन्दरकाण्ड-९- रामजी के सच्चे भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं और असंभव भी संभव हो जाता है

 

कागभुशुंडि जी पक्षिराज गरुण को श्रीरामकथा सुनाते हुए कहते हैं कि जिस पर रघुनाथ जी की कृपा दृष्टि होती है उसके लिए जहर अमृततुल्य, शत्रु मित्रतुल्य, समुंद्र गोपदतुल्य और अग्नि सीतलता युक्त हो जाती है । और विशाल सुमेरु पर्वत धूल के समान हो जाता है ।

 

 अर्थात वह बड़ी-बड़ी बाधाओं को आसानी से पार कर जाता है । वह बड़े पर्वत को धूल की भांति उड़ा सकता है,  उस पर आसानी से चढ़ सकता है । पार कर सकता है । समुंद्र उसके लिए छोटे गड्ढे की तरह जैसे गाय का पैर जमीन में पड़ने से जो छोटा सा गड्ढा बनता है उसके समान हो जाता है । जहर उसे अमृत के समान फलदायी हो जाता है । शत्रु मित्रवत व्यवहार करने लगता है । और अग्नि उसे जलाती नहीं है बल्कि अपने गुण के विपरीति उसे शीतलता प्रदान करती है ।

 

हनुमान जी ने अभी सापों की माता के मुँह में जाकर बाहर आ गए हैं । उनके विष का इनके ऊपर कोई असर नहीं हुआ । उल्टे इन्हें ढेर सारा आशीर्वाद मिला । लंकिनी शत्रु थी । लेकिन वह भी मित्रवत हो गई । पर्वत पर चढ़ना और उसे पैर से दबा देना हनुमान जी के लिए धूल की छोटी ढेरी पर चढ़ने और उसे दबा देने के समान ही है । इतनी बातें यात्रा के दौरान अब तक घटित हो चुकी हैं । 

 

उपरोक्त प्रसंग में अग्नि का भी वर्णन आया है लेकिन अभी तक यात्रा में हनुमानजी का अग्नि का सामना नहीं हुआ है । इसलिए यहाँ यह संकेत मिल रहा कि अग्नि से सामना होने पर भी अग्नि हनुमान जी को जलाएगी नहीं उल्टे शीतलता प्रदान करेगी ।


इस प्रकार रामजी के सच्चे भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं और असंभव से लगना वाला कार्य भी संभव हो जाता है 

 

                         

।। महावीर हनुमान जी की जय ।

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