हनुमानजी
महाराज थोड़ा और बड़े हुए और इनका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया । तब इनके लिए गुरू की आवश्यकता हुई ।
हनुमान जी महाराज किस आदर्श गुरू के पास विद्या अध्ययन के लिए जाएँ । भुवनभास्कर भगवान सूर्य जो सब
शास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता हैं वे हनुमान जी को शिक्षा देने का आश्वासन दे
चुके थे ।
माता अंजना ने कहा बेटा
तुम उन्हीं के पास चले जाओ वे ही तुम्हारे योग्य गुरू हैं । माताजी ने हनुमानजी को
उनके बल की याद दिलाई और हनुमान जी माता-पिता की आज्ञा से देखते ही देखते सूर्य
देव के सामने पहुँच कर उनको प्रणाम करके अपने आने का अभिप्राय भी निवेदन कर दिया ।
सूर्य देव ने सोचा कि
ये बाल क्रीड़ा कर रहे हैं । इसलिए वे टालने का प्रयत्न करने लगे । गुरू और शिष्य
शिक्षण के समय सामन्यतया आमने सामने बैठकर शिक्षा का आदान प्रदान करते हैं । यही
प्राचीन परंपरा है । लेकिन सूर्य देव के पास ठहरने का समय ही नहीं । वे हमेशा चलते
ही रहते हैं और वो भी बड़े वेग से । ऐसे में वे शिक्षण का कार्य कैसे कर सकते हैं ?
शिक्षण के लिए तो ठहर कर शिक्षा देना चाहिए । सूर्य देव ने सारी परिस्थिति बता दी ।
हनुमानजी बोले कोई
बात नहीं है । आप मुझको पढाएं । मैं चलते हुए पढ़ता रहूँगा और प्रश्न भी पूछता
रहूँगा । मैं आपके रथ के वेग से चलता रहूँगा । कोई समस्या नहीं आएगी । और न ही
क्रम भंग होने पायेगा ।
सूर्यदेव ने कहा
पढ़ाई के समय आमने सामने होकर पढ़ना ही उत्तम होता है । इस समस्या का निराकरण कैसे
होगा ? हनुमानजी बोले गुरुदेव आप अपने रथ पर बैठकर अपने वेग से चलते रहें । और मैं
आपके सामने मुँह करके पीठ पीछे करके उसी वेग से समान दूरी बनाकर चलता रहूँगा ।
सूर्य देव तैयार हो गए
। प्रसन्न हो गए । उदयाचल से अस्ताचल तक सूर्यदेव की ओर मुँह करके चलते हुए हनुमानजी
बालकों के खेल के समान पढ़ते हुए चलने लगे । हनुमान जी के पढ़ने में न कोई क्रम भंग
होता था और न ही कोई भूल होती थी । इस प्रकार चलते हुए हनुमान जी ने व्याकरण, वेद,
वेदांग, शास्त्र आदि सारी विद्याओं का अध्ययन कर लिया ।
उस समय का द्रश्य
बहुत अनोखा था । लोकपाल, शंकर जी, विष्णुजी, व्रह्मा जी आदि हर कोई हनुमान जी का
साहस, उनका वेग, उनकी लगन, उनका धैर्य, उनका बल, उनका दृढ निश्चय आदि देखकर चकित
था । सबकी आँखे चौंधिया सी गईं । सब लोगों के चित्त में यही भाव आ रहा था कि क्या
स्वयं बल, आथवा स्वयं वीररस, अथवा स्वयं धैर्य, अथवा स्वयं साहस अथवा इन सबके समूह
का सार ही साक्षात शरीर धारण करके आ गया है-
भानु सो पढ़न हनुमान गए भानु मन
अनुमानि सिसुकेलि
कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगन गम गगन मगन मन,
क्रम
को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ।।
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि
लोचननि चकाचौंधी चित्तनि
खभार सो ।
बल
कैधों वीररस, धीरज के, साहस कै,
तुलसी शरीर धरे सबनि को सार सो ।।
।। बिद्यार्थी हनुमानजी की जय ।।
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