(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति
योग का उपदेश )
मैं ही संपूर्ण शक्तियों का प्रवर्तक, निवर्तक
सबका आधारभूत तथा अमृत की निधि हूँ –
अहं हि सर्वशक्तीनां प्रवर्तकनिवर्तकः
।
आधारभूतः सर्वासां निधानममृतस्य च ।।
मेरी एक
सर्वांतर्यामिनी शक्ति ब्रह्माजी के रूप में स्थित होकर विविध नाम-रूप वाले जगत की
रचना करती है । दूसरी शक्ति अनंत जगन्नाथ, जगन्मय, नारायण होकर इस विश्व का पालन
करती है । तीसरी जो मेरी महाशक्ति है वह संपूर्ण जगत का संहार करती है । उसे तामसी
कहा गया है । वह कालात्मा एवं रुद्ररूपिणी है ।
कुछ साधक मुझे ध्यान
के द्वारा देखते हैं । दूसरे लोग ज्ञान से, अन्य लोग भक्तियोग के द्वारा मेरा
साक्षात्कार करते हैं । तथा कतिपय साधक कर्मयोग के द्वारा मेरा साक्षात्कार करते
हैं-
ध्यानेन मां प्रपश्यन्ति
केचिज्ज्ञानेन चापरे ।
अपरे भक्तियोगेन कर्मयोगेन चापरे ।।
सभी भक्तों में मुझे वह सबसे प्रिय है, जो विशुद्ध ज्ञान के द्वारा
मेरी नित्य आराधना करता है, अन्य किसी साधन से नहीं-
सर्वेषामेव भक्तानामेष प्रियतरो मम ।।
यो विज्ञानेन मां नित्यमाराधयति
नान्यथा ।।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय हनुमान ।।
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