राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Sunday, August 4, 2024

श्रीराम गीता- भाग बारह (भक्ति योग- चार)


(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति योग का उपदेश )

 

मैं ही संपूर्ण शक्तियों का प्रवर्तक, निवर्तक सबका आधारभूत तथा अमृत की निधि हूँ

अहं हि सर्वशक्तीनां प्रवर्तकनिवर्तकः ।

आधारभूतः सर्वासां निधानममृतस्य च ।।

 

 मेरी एक सर्वांतर्यामिनी शक्ति ब्रह्माजी के रूप में स्थित होकर विविध नाम-रूप वाले जगत की रचना करती है । दूसरी शक्ति अनंत जगन्नाथ, जगन्मय, नारायण होकर इस विश्व का पालन करती है । तीसरी जो मेरी महाशक्ति है वह संपूर्ण जगत का संहार करती है । उसे तामसी कहा गया है । वह कालात्मा एवं रुद्ररूपिणी है ।

 

  कुछ साधक मुझे ध्यान के द्वारा देखते हैं । दूसरे लोग ज्ञान से, अन्य लोग भक्तियोग के द्वारा मेरा साक्षात्कार करते हैं । तथा कतिपय साधक कर्मयोग के द्वारा मेरा साक्षात्कार करते हैं-

ध्यानेन मां प्रपश्यन्ति केचिज्ज्ञानेन चापरे ।

अपरे भक्तियोगेन कर्मयोगेन चापरे ।।

 

सभी भक्तों में मुझे वह सबसे प्रिय है, जो विशुद्ध ज्ञान के द्वारा मेरी नित्य आराधना करता है, अन्य किसी साधन से नहीं-

 

सर्वेषामेव भक्तानामेष प्रियतरो मम ।।

यो विज्ञानेन मां नित्यमाराधयति नान्यथा ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय हनुमान ।।


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