भगवान श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ सीता जी की खोज करते हुए
सर, सरिता, गिर आदि को पार करते हुए आगे बढ़ रहे थे । आगे चलने पर दोनों भाई ऋष्यमूक पर्वत के पास
पहुँच गए-
आगे चले बहुरि रघुराया ।
ऋष्यमूक पर्वत नियराया ।।
इसी ऋष्यमूक पर्वत पर
सुग्रीव जी अपने सचिवों के साथ रहते थे । मतंग मुनि के शाप के कारण बालि ऋष्यमूक
पर्वत पर नहीं आ सकता था । फिर भी सुग्रीव जी भयभीत रहते थे । क्योंकि बालि अपने
शत्रुओं का पीछा छोड़ता नहीं था । इसलिए सुग्रीव जी को इस बात की चिंता रहती थी कि
भले ही बालि स्वयं यहाँ नहीं आ सकता लेकिन किसी दूसरे को भेज कर वध करा सकता है ।
रामजी और लक्ष्मण जी भले ही
तपस्वी वेश में थे । लेकिन
उनके शरीर से, उनके तेज से वीरता झलकती थी । और वे धनुष वाण भी धारण किए हुए थे । इसलिए उनको देखकर सुग्रीव के
मन में शंका हो गई कि हो न हो ये बालि के भेजे हुए हों । क्योंकि ये वीर भी हैं,
इनके धनुष और वाण भी है और ये इसी ओर आ रहे हैं ।
रामजी और लक्ष्मण जी के
रूप, तेज और प्रभाव से सुग्रीव जी चकित होकर सोच रहे थे कि इनको युद्ध में जीता
नहीं जा सकता है । इसलिए इनका भेद जान लेना चाहिए कि ये कौन हैं, कहाँ से आएँ हैं
और इनके यहाँ आने का प्रयोजन क्या है ? यदि ये सही में बालि के द्वारा भेजे हुए
हों तो यहाँ से भाग जाना ही उचित है ।
हनुमान जी महाराज धीर, वीर,
और बड़े बुद्धिमान हैं । और सुग्रीव जी के विश्वसनीय और प्रिय हैं । इसलिए सुग्रीव
जी ने हनुमान जी को रामजी और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए कहा । और सुग्रीव की
शंका तथा उन्हें भयभीत देखकर हनुमानजी रामजी और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए चल
दिए-
सिया को खोजत राम लखन जब ऋष्यमूक पर्वत नियराए ।
देखत बलबीरा दोउ रनधीरा कपि सुग्रीव बहुत घबराए ।।
आवत केहि काजा दो नरराजा सोचत चित कहुँ थित नहि पाए ।
सुनु हनुमाना अति मतिवाना दोउ वर बीर कहाँ ते आए ।।
देखो तुम जाई कहौ बुझाई, भागौं जो ये बालि पठाए ।
सबको जानैं को नहिं जानै तेहिं जानन चले आप दुराए ।।
।। श्रीहनुमानजी महाराज की जय ।।
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