(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति
योग का उपदेश )
मेरी आराधना के अभिलाषी अन्य जो तीन प्रकार के भक्त हैं वे भी
मुझे ही प्राप्त होते हैं और पुनः लौटकर इस संसार में नहीं आते-
अन्ये च ये त्रयो भक्ता
मदाराधनकान्क्षिणः ।
तेऽपि मां प्राप्नुवन्त्येव
नावर्तन्ते च वै पुनः ।।
मैंने ही सम्पूर्ण जगत का विस्तार किया है- जो इस बात को जानता
है वह अमृतस्वरूप हो जाता है । मैं इस जगत को स्वभाव से ही वर्तमान देखता हूँ ।
जिसे महायोगेश्वर साक्षात भगवान ने समयानुसार रचा है । वे ही योगशास्त्र के वक्ता
हैं । इसलिए शास्त्रों में उन्हें योगी और मायावी कहा गया है ।
विद्वानों ने उन्हीं
महाप्रभु भगवान महादेव को योगेश्वर कहा है । सम्पूर्ण जीवों से महान होने के कारण
परमात्मा को महेश्वर कहा गया है और वे ही सबसे परे होने के कारण परमेश्वर कहे जाते
हैं । महान ब्रह्मय होने से ही उनका नाम भगवान ब्रह्मा है । यह सब मेरे ही स्वरूप का
परिचय है ।
जो मुझे इस प्रकार महायोगेश्वरेश्वर जानता है वह अविचल योग से
युक्त होता है इसमें संशय नहीं है -
यो मामेवं विजानाति
महायोगेश्वरेश्वरम् ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र
संशयः ।।
वही मैं सबका प्रेरक परम देव परमानंद का आश्रय ले सर्वत्र
विराजमान हूँ । जो योगी सदा इस प्रकार मुझे जानता है वही वेदवेत्ता है । यह
सम्पूर्ण वेदों में निश्चित रूप से प्रतिपादित गुह्यतम ज्ञान है । जो
प्रसन्नचेत्ता धर्मात्मा एवं अग्निहोत्री हो, उसे इसका उपदेश देना चाहिए ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय हनुमान ।।
No comments:
Post a Comment