(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति योग का उपदेश )
मैंने ही परमेष्ठी ब्रह्मा को कमलपर स्थापना करके उन्हें संपूर्ण
वेदों का ज्ञान दिया था । जो उनके मुखों से
प्रकट हुए ।
मैं ही
समस्त योगियों का अविनाशी गुरू हूँ । धर्मात्माओं का रक्षक तथा वेदद्रोहियों का
विनाश करने वाला मैं ही हूँ –
अहमेव
हि सर्वेषां योगिनां गुरुरव्ययः ।
धार्मिकाणां
च गोप्ताहं निहन्ता वेदविद्विषाम् ।।
मैं ही
योगियों को समस्त संसार बंधन से मुक्त करता हूँ । संसार का हेतु भी मैं ही हूँ और
समस्त संसार से परे भी मैं ही हूँ –
अहं वै
सर्वसंसारान्मोचको योगिनामिह ।
संसारहेतुरेवाहं
सर्वसंसार वर्जितः ।।
मैं ही स्रष्टा, पालक और संहारक हूँ । माया का स्वामी
भी मैं ही हूँ । मेरी शक्तिस्वरूपा माया समस्त लोक को मोह में डालने वाली है-
अहमेव हि संहर्ता स्रष्टाहं परिपालकः ।
मायावी मामिका शक्तिर्माया लोकविमोहिनी’ ।।
जो मेरी ही पराशक्ति है, उसे विद्या कहते हैं । मैं उसी विद्या
के द्वारा योगियों के ह्रदय में रहकर माया का विनाश करता हूँ ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय हनुमान ।।
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