राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Thursday, July 25, 2024

श्रीराम गीता- भाग ग्यारह (भक्ति योग- तीन)-धर्मात्माओं का रक्षक तथा वेदद्रोहियों का विनाश करने वाला मैं ही हूँ

 

 (भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति योग का उपदेश )

 

मैंने ही परमेष्ठी ब्रह्मा को कमलपर स्थापना करके उन्हें संपूर्ण वेदों का ज्ञान दिया था । जो उनके मुखों से प्रकट हुए ।

 

मैं ही समस्त योगियों का अविनाशी गुरू हूँ । धर्मात्माओं का रक्षक तथा वेदद्रोहियों का विनाश करने वाला मैं ही हूँ –

 

अहमेव हि सर्वेषां योगिनां गुरुरव्ययः

धार्मिकाणां च गोप्ताहं निहन्ता वेदविद्विषाम् ।।

 

मैं ही योगियों को समस्त संसार बंधन से मुक्त करता हूँ । संसार का हेतु भी मैं ही हूँ और समस्त संसार से परे भी मैं ही हूँ –

अहं वै सर्वसंसारान्मोचको योगिनामिह ।

संसारहेतुरेवाहं सर्वसंसार वर्जितः ।।

 

मैं ही स्रष्टा, पालक और संहारक हूँ । माया का स्वामी भी मैं ही हूँ । मेरी शक्तिस्वरूपा माया समस्त लोक को मोह में डालने वाली है-

अहमेव हि संहर्ता स्रष्टाहं परिपालकः ।

मायावी मामिका शक्तिर्माया लोकविमोहिनी’ ।।

 

जो मेरी ही पराशक्ति है, उसे विद्या कहते हैं । मैं उसी विद्या के द्वारा योगियों के ह्रदय में रहकर माया का विनाश करता हूँ ।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय हनुमान ।।

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