कागभुशुंडि जी पक्षिराज गरुण को श्रीरामकथा सुनाते हुए कहते हैं कि जिस पर रघुनाथ जी की कृपा दृष्टि होती है उसके लिए जहर अमृततुल्य, शत्रु मित्रतुल्य, समुंद्र गोपदतुल्य और अग्नि सीतलता युक्त हो जाती है । और विशाल सुमेरु पर्वत धूल के समान हो जाता है ।
हनुमान जी ने अभी सापों की माता के मुँह में जाकर बाहर आ गए हैं । उनके विष का इनके ऊपर कोई असर नहीं हुआ । उल्टे इन्हें ढेर सारा आशीर्वाद मिला । लंकिनी शत्रु थी । लेकिन वह भी मित्रवत हो गई । पर्वत पर चढ़ना और उसे पैर से दबा देना हनुमान जी के लिए धूल की छोटी ढेरी पर चढ़ने और उसे दबा देने के समान ही है । इतनी बातें यात्रा के दौरान अब तक घटित हो चुकी हैं ।
उपरोक्त प्रसंग में अग्नि का भी वर्णन आया है लेकिन अभी तक यात्रा
में हनुमानजी का अग्नि का सामना नहीं हुआ है । इसलिए यहाँ यह संकेत मिल रहा कि अग्नि
से सामना होने पर भी अग्नि हनुमान जी को जलाएगी नहीं उल्टे शीतलता प्रदान करेगी ।
इस प्रकार रामजी के सच्चे भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं और असंभव से लगना वाला कार्य भी संभव हो जाता है ।
।। महावीर हनुमान जी की जय ।।