राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Thursday, July 10, 2025

सुन्दरकाण्ड-१०-हनुमान जी का लंका में प्रवेश और सीताजी कि खोज करना

 

जब लंकिनी ने हनुमानजी से कहा कि अब आप जिस कार्य के लिए आए हैं उसे भगवान श्रीराम को ह्रदय में धारण करके और लंका में प्रवेश करके पूर्ण कीजिए । तब हनुमान जी महाराज बहुत ही सूक्ष्म रूप बनाकर और राम जी का सुमिरण करके लंका में प्रवेश कर गए ।

 

हनुमानजी ने प्रत्येक मन्दिर में सीता जी को खोजा । उन्हें जहाँ-तहाँ अनेकों योद्धा दिखाई पड़े । इसी क्रम में सीता जी को खोजते हुए हनुमानजी रावण के मन्दिर में गये जो बहुत ही विचित्र थी, जिसका वर्णन नहीं हो सकता । रावण वहाँ सो रहा था और मन्दिर में सीता जी नहीं थीं ।

 

हनुमान जी ने इस प्रकार सभी मंदिरों में जा-जाकर सीता जी को खोजा । हनुमानजी ने लंका के मंदिरों-घरों सभी जगह सीताजी को खोजा लेकिन सीताजी कहीं नहीं मिलीं ।

 

 दरअसल लंका में केवल विभीषण जी ही घर में रहते थे और घर से अलग थोड़ी दूर पर मंदिर था जिसमें विभीषण जी पूजा-पाठ-ध्यान करते थे । लेकिन विभीषण जी भक्त थे तो वे मंदिर को घर कैसे बना लेते ? क्योंकि मंदिर मूलतः भगवान के लिए होता है । इसके विपरीत रावणादि आदि बड़े-बड़े राक्षस मंदिर को ही घर बना लिए थे और उसी में रहते थे । लंका में अधिकांश ढाँचे मंदिरनुमा ही थे । जहाँ पर्वत के उपर रावण का अखाड़ा था । वह महल भी मंदिरनुमा ही था- बैठ जाय तेहिं मंदिर रावन । लागे किंनर गुन गन गावन ।।

 

जब सीता जी का कहीं पता नहीं चला तो हनुमान जी थोड़ा सा सोच में पड़ गए कि अब क्या करूँ ? और राम जी से मन ही मन प्रार्थना करने लगे कि हे राघव ! अब यह कार्य आप पूर्ण करा लीजिए ।

 

 

।। जय श्रीराम ।।

।जय श्रीहनुमान ।।

 

Tuesday, July 1, 2025

सुन्दरकाण्ड-९- रामजी के सच्चे भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं और असंभव भी संभव हो जाता है

 

कागभुशुंडि जी पक्षिराज गरुण को श्रीरामकथा सुनाते हुए कहते हैं कि जिस पर रघुनाथ जी की कृपा दृष्टि होती है उसके लिए जहर अमृततुल्य, शत्रु मित्रतुल्य, समुंद्र गोपदतुल्य और अग्नि सीतलता युक्त हो जाती है । और विशाल सुमेरु पर्वत धूल के समान हो जाता है ।

 

 अर्थात वह बड़ी-बड़ी बाधाओं को आसानी से पार कर जाता है । वह बड़े पर्वत को धूल की भांति उड़ा सकता है,  उस पर आसानी से चढ़ सकता है । पार कर सकता है । समुंद्र उसके लिए छोटे गड्ढे की तरह जैसे गाय का पैर जमीन में पड़ने से जो छोटा सा गड्ढा बनता है उसके समान हो जाता है । जहर उसे अमृत के समान फलदायी हो जाता है । शत्रु मित्रवत व्यवहार करने लगता है । और अग्नि उसे जलाती नहीं है बल्कि अपने गुण के विपरीति उसे शीतलता प्रदान करती है ।

 

हनुमान जी ने अभी सापों की माता के मुँह में जाकर बाहर आ गए हैं । उनके विष का इनके ऊपर कोई असर नहीं हुआ । उल्टे इन्हें ढेर सारा आशीर्वाद मिला । लंकिनी शत्रु थी । लेकिन वह भी मित्रवत हो गई । पर्वत पर चढ़ना और उसे पैर से दबा देना हनुमान जी के लिए धूल की छोटी ढेरी पर चढ़ने और उसे दबा देने के समान ही है । इतनी बातें यात्रा के दौरान अब तक घटित हो चुकी हैं । 

 

उपरोक्त प्रसंग में अग्नि का भी वर्णन आया है लेकिन अभी तक यात्रा में हनुमानजी का अग्नि का सामना नहीं हुआ है । इसलिए यहाँ यह संकेत मिल रहा कि अग्नि से सामना होने पर भी अग्नि हनुमान जी को जलाएगी नहीं उल्टे शीतलता प्रदान करेगी ।


इस प्रकार रामजी के सच्चे भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं और असंभव से लगना वाला कार्य भी संभव हो जाता है 

 

                         

।। महावीर हनुमान जी की जय ।

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सुन्दरकाण्ड-१४ - त्रिजटा का स्वप्न और हनुमान जी का अशोक वृक्ष से मुँदरी गिरना

  लंका में त्रिजटा नाम की एक राक्षसी रहती थी । जिसे रावण ने अशोक वाटिका में सीताजी की रखवाली में लगा रखा था । त्रिजटा निपुण बुद्धि वाली थी ।...

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