जैसा पिछले पोस्ट में बताया गया है सूर्य देव अपने रथ में
बैठकर चलते रहते थे और हनुमान जी उनके सामने, उनकी ओर मुँह करके उसी वेग से पीठ की
तरफ चलते जाते थे और पढ़ते जाते थे । इस प्रकार उदयाचल से अस्ताचल तक चलते हुए
हनुमान जी ने सूर्य देव से सारी विद्याएँ सीख लिए ।
इस प्रकार शिक्षा
पूर्ण होने पर हनुमानजी सूर्य देव को प्रणाम करके गुरू दक्षिणा माँगने के लिए कहा ।
यह सनातन और भारत की प्राचीन परंपरा है कि शिक्षा पूर्ण होने पर शिष्य अपने गुरू
को दक्षिणा देता है । और गुरू अपने शिष्य के सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा माँगता है
।
सूर्य देव कोई साधारण
गुरू तो हैं नहीं । और न ही सूर्य देव को किसी चीज की कमी है । फिर वे गुरू दक्षिणा
के रूप में हनुमान जी से क्या लें ? फिर भी हनुमानजी द्वारा विनय पूर्वक आग्रह किए
जाने पर सूर्य देव ने कहा कि बेटा हनुमान मेरा पुत्र सुग्रीव किष्किन्धा में रहता
है । तुम उसके सचिव बन जाओ । और उसकी सहायता और रक्षा करो ।
हनुमानजी ने सूर्य देव
को इस गुरू दक्षिणा के लिए वचन देकर-प्रतिज्ञा करके सूर्य देव को साष्टांग प्रणाम
करके और आशीर्वाद पाकर वापस गंधमादन पर्वत पर लौट आए । और अपने माता-पिता को
प्रणाम किया । उनकी शिक्षा पूर्ण होने की खुशी में सुंदर उत्सव मनाया गया । और कुछ
समय पश्चात हनुमानजी सुग्रीव की सेवा में चले गए ।
।। हनुमान जी महाराज की जय ।।
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