राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Saturday, February 8, 2025

सुंदरकाण्ड-१ -हनुमानजी के बल का वर्णन-अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं

हनुमान जी महाराज अतुलित बल के भंडार हैं । यह नहीं कहा जा सकता है कि हनुमान जी में कितना बल है यानी इनके बल को मापा नहीं जा सकता । इनके बल की किसी से तुलना नहीं हो सकती । 


 कहते हैं कि दस हजार हाथी में जितना बल होता है उतना बल एक दिग्गज में और दस हजार दिग्गज में जितना बल होता है उतना बल एक ऐरावत हाथी में होता है । जितना बल दस हजार ऐरावत हाथी में होता है उतना बल एक देवराज इंद्र में होता है । और जितना बल दस हजार देवराज इंद्र में होता है उतना बल हनुमान जी की एक कनिष्ठा ऊँगली में है । 


ऐसे में यही कहा जा सकता है कि हनुमान जी के बल का कोई माप नहीं है और वे अनंत बल के धाम हैं ।

 

   हनुमान जी महाराज के देह की कांति सुमेरु पर्वत की भाँति हैं । अर्थात वे स्वर्ण की सी आभा वाले हैं । और उनकी विराटता भी पर्वत के समान है । राक्षस रुपी वन को जलाने के लिए हनुमान जी महाराज अग्नि के समान हैं । 


ज्ञानियों में हनुमान जी महाराज सबसे श्रेष्ठ हैंसबसे आगे हैं । हनुमान जी महाराज सभी सदगुणों के भंडार है । और वानरों में श्रेष्ठ हैं व उनके प्रमुख है । रामजी के प्रिय हैंभक्त हैंश्रेष्ठ दूत हैं । ऐसे पवनपुत्र हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूँ ।

 

।। जय हनुमान ।।


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