राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Monday, March 3, 2025

सुन्दरकाण्ड-३- हनुमानजी का मैनाक पर्वत का आदर करके बिना विश्राम किए आगे बढ़ना-राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम

 

हनुमान जी महाराज सीता जी का पता लगाने के लिए रामवाण की तरह लंका चल दिए ।  समुंद्र ने विचार किया कि हनुमान जी  राम जी के दूत हैं और इसलिए उसने मैनाक पर्वत से कहा कि तुम हनुमान जी को अपने ऊपर विश्राम दो । जिससे उनकी थकान दूर हो जायेगी । 


समुंद्र का निर्माण राम जी के पुरखों ने किया था । राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने इसका निर्माण किया था । इसलिए समुंद्र रघुकुल का कृतग्य था । 


वहीं दूसरी ओर देवराज इंद्र के डर से मैनाक ने समुंद्र में शरण ले रखा था । पवन देवता ने इसमें मैनाक की मदद किया था । और हनुमान जी पवन देवता के औरस पुत्र हैं  इसलिए मैनाक वायु देवता के उपकार के प्रति कृतग्य होने से और समुद्र ने अपने भीतर मैनाक पर्वत को शरण दे रखा था इससे समुद्र के कहने पर हनुमान जी को अपने ऊपर विश्राम देने हेतु प्रस्तुत हुआ  

 

 मैनाक ने हनुमान जी से विश्राम करने के लिए कहा । लेकिन हनुमान जी के पास विश्राम के लिए समय नहीं था । उनकी पहली प्राथमिकता रामकाज की थी यानी सीता जी का पता लगाने की थी । ऐसे में विश्राम कहाँ ? हनुमानजी जैसा स्वामिभक्त, आज्ञा पालक, सेवा परायण सेवक और कौन हो सकता है ? 


इसलिए हनुमान जी ने मैनाक को स्पर्श कर लिया ।  इसप्रकार मैनाक का आदर किया । और प्रणाम किया । और बोले बिना रामकाज सम्पन्न किए अर्थात बिना सीता माता का पता लगाए मुझे विश्राम नहीं है ।

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । 

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम । 


। जय हनुमान 

 

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