जब लंकिनी हनुमानजी से कहा कि आब आप जिस कार्य के लिए आए हैं उसे
भगवान श्रीराम को ह्रदय में धारण कर लंका में प्रवेश करके पूर्ण कीजिए । तब हनुमान
जी महाराज बहुत ही सूक्ष्म रूप बनाकर और राम जी का सुमिरण करके लंका में प्रवेश कर
गए ।
हनुमानजी ने प्रत्येक मन्दिर में सीता जी को खोजा । उन्हें जहाँ-तहाँ
अनेकों योद्धा दिखाई पड़े । इसी क्रम में सीता जी को खोजते हुए हनुमान जी रावण के
मन्दिर में गये जो बहुत ही विचित्र थी, जिसका वर्णन नहीं हो सकता । रावण वहाँ सो रहा
था और मन्दिर में सीता जी नहीं थीं ।
हनुमान जी इस प्रकार सभी मंदिरों में जा-जाकर सीता जी को खोजा । हनुमानजी
ने लंका के मंदिरों-घरों सभी जगह सीताजी को खोजा लेकिन सीताजी कहीं नहीं मिलीं ।
दरअसल
लंका में केवल विभीषण जी ही घर में रहते थे और घर से अलग थोड़ी दूर पर मंदिर था
जिसमें विभीषण जी पूजा-पाठ-ध्यान करते थे । लेकिन विभीषण जी भक्त थे तो वे मंदिर
को घर कैसे बना लेते ? क्योंकि मंदिर मूलतः भगवान के लिए होता है । इसके विपरीत
रावणादि आदि बड़े-बड़े राक्षस मंदिर को ही घर बना लिए थे और उसी में रहते थे । लंका
में अधिकांश ढाँचे मंदिरनुमा ही थे । जहाँ पर्वत के उपर रावण का अखाड़ा था । वह महल
भी मंदिरनुमा ही था- बैठ जाय तेहिं मंदिर रावन । लागे किंनर गुन गन गावन ।।
जब सीता जी का कहीं पता नहीं चला तो हनुमान जी थोड़ा सोच में पड़ गए कि
अब क्या करूँ ? और राम जी से मन ही मन प्रार्थना करने लगे कि हे राघव ! अब यह
कार्य आप पूर्ण करा लीजिए ।
।। जय श्रीराम ।।
।जय श्रीहनुमान ।।
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