हनुमान जी के कोटि के साधु-भक्त के सत्संग की, स्पर्श की बहुत महिमा होती है । हनुमानजी के स्पर्श से लंकिनी के मति के पट खुल गए और बोली हे तात मेरा कोई बहुत बड़ा पुण्य उदय हुआ है जिससे आज मैंने अपनी आँखों से रामजी के दूत-राम दूत हनुमान का दर्शन प्राप्त किया है ।
लंकिनी बोली हे तात यदि सत्संग के एक क्षण के सुख को तराजू के एक
पलड़े पर और तराजू के दूसरे पलड़े पर स्वर्ग और अपबर्ग (मोक्ष) के सारे सुख को रख
दिया जाय तो पहला पलड़ा ही भारी होगा ।
यहाँ यह ध्यान देना बहुत जरूरी है कि जिसके माध्यम से सत्संग मिल रही
है उसका स्तर क्या है ? यदि हनुमानजी महाराज जी की कोटि के संत और भक्त के माध्यम
से सत्संगत मिलता है तभी उपरोक्त बातें सत्य होती हैं ।
हनुमानजी महराज के सत्संग से राक्षसी लंकिनी का
भी विवेक जागृत हो गया । और उसे स्वर्ग और मोक्ष के सुख
की अपेक्षा हृदय में कोशलपुर के राजा रामजी को हृदय में धारण करने का सुख श्रेष्ठत
लगने लगा ।
इसप्रकार कहा जा सकता है कि सत्संग में श्रोता और वक्ता दोनों का
स्तर महत्वपूर्ण होता है लेकिन इस घटना से पता चलता है कि वक्ता का स्तर श्रेष्ठ
होना ज्यादा जरूरी है ।
लंकिनी कहने लगी कि अब आप कौशलपुर के राजा रघुनाथ जी को हृदय में धारण
करके लंका में प्रवेश करके सारे कार्य आप पूर्ण कीजिए ।
।। महावीर हनुमान जी की जय ।।