राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Saturday, August 10, 2024

श्रीराम गीता- भाग तेरह (भक्ति योग- पाँच)-महायोगेश्वरेश्वर भगवान राम

 

(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति योग का उपदेश )

 

मेरी आराधना के अभिलाषी अन्य जो तीन प्रकार के भक्त हैं वे भी मुझे ही प्राप्त होते हैं और पुनः लौटकर इस संसार में नहीं आते-

 

अन्ये च ये त्रयो भक्ता मदाराधनकान्क्षिणः ।

तेऽपि मां प्राप्नुवन्त्येव नावर्तन्ते च वै पुनः ।।

 

मैंने ही सम्पूर्ण जगत का विस्तार किया है- जो इस बात को जानता है वह अमृतस्वरूप हो जाता है । मैं इस जगत को स्वभाव से ही वर्तमान देखता हूँ । जिसे महायोगेश्वर साक्षात भगवान ने समयानुसार रचा है । वे ही योगशास्त्र के वक्ता हैं । इसलिए शास्त्रों में उन्हें योगी और मायावी कहा गया है ।

 

  विद्वानों ने उन्हीं महाप्रभु भगवान महादेव को योगेश्वर कहा है । सम्पूर्ण जीवों से महान होने के कारण परमात्मा को महेश्वर कहा गया है और वे ही सबसे परे होने के कारण परमेश्वर कहे जाते हैं । महान ब्रह्मय होने से ही उनका नाम भगवान ब्रह्मा है । यह सब मेरे ही स्वरूप का परिचय है ।

 

जो मुझे इस प्रकार महायोगेश्वरेश्वर जानता है वह अविचल योग से युक्त होता है इसमें संशय नहीं है -

यो मामेवं विजानाति महायोगेश्वरेश्वरम् ।

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।।

 

वही मैं सबका प्रेरक परम देव परमानंद का आश्रय ले सर्वत्र विराजमान हूँ । जो योगी सदा इस प्रकार मुझे जानता है वही वेदवेत्ता है । यह सम्पूर्ण वेदों में निश्चित रूप से प्रतिपादित गुह्यतम ज्ञान है । जो प्रसन्नचेत्ता धर्मात्मा एवं अग्निहोत्री हो, उसे इसका उपदेश देना चाहिए ।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय हनुमान ।।

Sunday, August 4, 2024

श्रीराम गीता- भाग बारह (भक्ति योग- चार)


(भगवान श्रीराम का हनुमानजी को भक्ति योग का उपदेश )

 

मैं ही संपूर्ण शक्तियों का प्रवर्तक, निवर्तक सबका आधारभूत तथा अमृत की निधि हूँ

अहं हि सर्वशक्तीनां प्रवर्तकनिवर्तकः ।

आधारभूतः सर्वासां निधानममृतस्य च ।।

 

 मेरी एक सर्वांतर्यामिनी शक्ति ब्रह्माजी के रूप में स्थित होकर विविध नाम-रूप वाले जगत की रचना करती है । दूसरी शक्ति अनंत जगन्नाथ, जगन्मय, नारायण होकर इस विश्व का पालन करती है । तीसरी जो मेरी महाशक्ति है वह संपूर्ण जगत का संहार करती है । उसे तामसी कहा गया है । वह कालात्मा एवं रुद्ररूपिणी है ।

 

  कुछ साधक मुझे ध्यान के द्वारा देखते हैं । दूसरे लोग ज्ञान से, अन्य लोग भक्तियोग के द्वारा मेरा साक्षात्कार करते हैं । तथा कतिपय साधक कर्मयोग के द्वारा मेरा साक्षात्कार करते हैं-

ध्यानेन मां प्रपश्यन्ति केचिज्ज्ञानेन चापरे ।

अपरे भक्तियोगेन कर्मयोगेन चापरे ।।

 

सभी भक्तों में मुझे वह सबसे प्रिय है, जो विशुद्ध ज्ञान के द्वारा मेरी नित्य आराधना करता है, अन्य किसी साधन से नहीं-

 

सर्वेषामेव भक्तानामेष प्रियतरो मम ।।

यो विज्ञानेन मां नित्यमाराधयति नान्यथा ।।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय हनुमान ।।


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