राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Tuesday, March 11, 2025

सुन्दरकाण्ड-४-हनुमान जी का सुरसा की परीक्षा में सफल होना- आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान

 

हनुमानजी महाराज मैनाक पर्वत का आदर किया लेकिन उनके सत्कार के प्रस्ताव को अस्वीकार करके आगे बढ़ गए । क्योंकि हनुमानजी महाराज को राम काज किए बिना आदर, सत्कार या विश्राम कुछ भी स्वीकार्य नहीं था । हनुमान जी लंका जा रहे थे । इसलिए देवता लोग थोड़ा बिचलित थे कि क्या होगा ? इसका एक कारण यह था कि लंका दुर्गम नगरी है । इसमें प्रवेश कर पाना ही दुर्गम है । बहुत सुरक्षा है ।  किसी तरह प्रवेश भी हो जाए तो ऐसे बड़े-बड़े राक्षसवीर योद्धा हैं जिनसे कोई पार नहीं पाता । यहाँ साधारण बल और बुद्धि से काम तो चलने वाला नहीं है । यहाँ वही सफल होगा जिसके बास असाधारण बल और बुद्धि होगी ।

 

 क्योंकि यहाँ का राजा रावण हैं जिसके वंदीखाने में लोकपाल तक बंद रहते हैं । सब देव अधिकारी ग्रह आदि जिसके अधिकार में हैं । व्रह्मा जी रोज वेद सुनाने जाते हैं । उनको ऐसा करने के लिए कह रखा हैआदेश दिया है । और शंकर जी भी भय बस रोज पूजन कराने लंका जाते हैं-शंभु सभीत पुजावन जाहीं’ । बड़ी बिडम्बना है जो दूसरों को वेदपुरान कहने-सुनने पर देश निकाला देता हैदंड देता है वह खुद वेद सुनता है । आज भी ऐसे लोग होते हैं जो खुद थोड़ा बहुत पूजा पाठ करते हैं लेकिन बाहर इसकी आलोचना करते हैं ।


खैर उपरोक्त कारणों से देवताओं को थोड़ी चिंता हुई । क्योंकि वे अपने मन को समझा पाने में सफल नहीं हो पा रहे थे कि सीता माता का पता लगाकर सकुशल हनुमान जी वापस आ जाएँगे । इसलिए सर्पों की माता सुरसा से देवताओं ने कहा कि आप हनुमान जी के बल और बुद्धि की परीक्षा लीजिए । जिससे पता चल सके कि वे रामकाज में सफल हो जाएँगे ।

 

  देवताओं के कहने पर सुरसा जी हनुमान जी के मार्ग में आयीं और बोलीं कि देवताओं ने आज मुझे अहार दिया है । इससे मैं अपनी भूँख शांत करूंगी । यह सुनकर पवनपुत्र हनुमान जी ने कहा कि मुझे रामकाज करना है , लंका जाकर सीता माता का पता लगाकर रामजी को समाचार सुनाना है । इतना करके मैं स्वयं आपके मुँह में प्रवेश कर जाऊँगा । हे माता मैं सत्य कहता हूँ । आप मेरा रास्ता मत रोकिये मुझे जाने दीजिए । हनुमान जी ने बहुत प्रयत्न किया , नीति और धर्म युक्त बाते कहीं फिर भी सुरसा टस से मस नहीं हुई तब हनुमान जी बोले कि आप मान ही नहीं रही हैं तो मुझे अपना भोजन बना लीजिए ।

 

 यह सुनकर सुरसा ने एक योजन (आठ मील) तक अपने मुहँ को फैला लिया । तब हनुमान जी महाराज ने दो योजन का अपना आकार बना लिया । यह देखकर सुरसा ने सोलह योजन तक अपने मुँह को विस्तारित कर लिया । तब हनुमान जी ने अपना आकार बत्तीस योजन का कर लिया । इस प्रकार सुरसा अपना मुँह विस्तृत करती रहीं और हनुमाना जी जय श्रीराम बोलकर दुगना आकार बढ़ाते चले गए । कहते हैं कि भगवान राम के नाम में दो अक्षर हैं इसलिए एक बार राम बोलने पर हनुमान जी महाराज सुरसा के मुँह से दुगुने आकार के हो जाते थे ।

 

अंततः सुरसा ने सौ योजन तक अपने मुँह को विस्तारित कर लिया । अब अपनी असाधारण वुद्धि का परिचय देते हुए हनुमान जी बहुत ही सूक्ष्म रूप धारण करके सुरसा के मुँह में प्रवेश कर गए और फौरन वापस भी आ गए । हनुमान जी महाराज इसी बात का वादा भी कर रहे थे कि सीता जी का समाचार राम जी को देकर मैं आपके मुँह में प्रवेश कर जाऊंगा । लेकिन सुरसा ने माना नहीं तो इसलिए आज ही यह काम समपन्न कर दिए ।

 

सुरसा के मुँह से बाहर निकलकर हनुमान जी ने सुरसा जी को प्रणाम करके विदा माँगी कि माता जी अब मुझे जाने दीजिए । सुरसा प्रसन्न होकर बोलीं कि देवताओं ने मुझे जिस काम के लिए भेजा था वह मैंने कर दिया । मुझे आपके बल और बुद्धि का मरम मिल गया है । आप बल और बुद्धि के भंडार हो । आप राम जी के सभी काम को समपन्न कर सकोगे । ऐसा आशीर्वाद देकर सुरसा चली गईं । और हनुमान जी महाराज प्रसन्न होकर आगे चले ।

राम काज सब करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान । 

आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ।।


।। जय हनुमानजी ।। 

  


 

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