हनुमान जी ने बिप्र का रूप बनाकर राम-राम कहा और
सुनते ही विभीषण जी उठकर दौड़ते हुए आए और प्रणाम करके उनकी कुशल पूछा और कहा कि आप
अपनी कथा सुनाइए । विभीषण जी ने कहा कि मेरे ह्रदय में बहुत प्रेम उमड़ रहा है इससे
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आप या तो भगवान के भक्तों में से कोई हैं अथवा आप दीनों
से सहज ही प्रेम करने वाले दीनानुरागी साक्षात भगवान श्रीराम ही हैं जो अपनी ओर से
मुझे बड़भागी बनाने के लिए चले आए हो ।
विभीषण जी के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने अपना नाम
बताया और राम जी की कथा सुनाई । भक्त भगवान की ही कथा सुनते-सुनाते हैं, अपनी अथवा
किसी और की नहीं । सुनकर और सुनाकर दोंनो लोग के तन और मन पुलकित हो गए और राम जी
के गुणों को याद करके आनन्दित हो गए ।
फिर विभीषण जी हनुमान जी से बोले कि हे पवनपुत्र
मेरी रहनी सुनिए कि लंका में मैं किस प्रकार रहता हूँ । मैं लंका में ठीक वैसे ही
रहता हूँ जैसे बत्तीस दांतों के बीच में जिह्वा रहती है । कब कौन सा दाँत जीभ को
काट दे पता नहीं होता । और जीभ दांतों को तो काट नहीं सकती । वह बस चाट सकती है ।
जब दाँत में दर्द हो अथवा कुछ फस जाय तो जीभ उसे सहलाती रहती है । लेकिन दाँत मौका
मिलते ही जीभ को भी चबा लेते हैं ।
हे तात क्या कभी मुझको अनाथ जानकर रघुकुल के नाथ
श्रीराम जी मेरे ऊपर कृपा करेंगे । क्योंकि मेरा शरीर तामसी है और मेरे पास कोई भी
साधन जैसे पूजा, जप, तप आदि नहीं है । और न ही रामजी के चरण कमलों में प्रेम ही है
।
फिर
विभीषण जी ने कहा कि अब मुझे विश्वास हो गया है कि बिना राम जी की कृपा के साधु जन
से मिलना नहीं होता । राम जी ने मेरे ऊपर कृपा की है तभी तो आप अपनी ओर से मुझे
दर्शन देने चले आए ।
हनुमान जी ने विभीषण जी को समझाते हुए कहा कि
विभीषण जी राम जी की रीति सुनिए । राम जी
सदा अपने सेवक से प्रेम करते हैं । यह उनकी रीति और सेवक से प्रीति है । आप अपने मन को छोटा न कीजिए । मेरी ओर देखिए ।
मैं ही कहाँ बहुत कुलीन हूँ । बानर हूँ । और स्वभाव से ही चंचल हूँ और हर प्रकार
से हीन हूँ । मतलब कोई योग्य नहीं हूँ । इतना ही नहीं कोई सुबह नाम भी ले ले तो
उसे उस दिन आहार नहीं मिलता । मैं ऐसा अधम हूँ फिर भी मुझ पर भी रघुवीर राम जी की
कृपा हुई है । राम जी की कृपा और गुण को याद करके हनुमान जी के आँखों में आँसू भर
आए ।
वानर और भालुओं को बिकारी समझा जाता है । राम जी
से पहले किसी ने बानर-भालुओं से ऐसा प्रेम नहीं किया था । ऐसा सम्मान नहीं दिया था
। राम जी ने सबको अपना लिया, मित्र बना लिया, गले से लगा लिया । इसलिए विभीषण जी
को समझाते हुए उनको बल देने के लिए हनुमान जी ने ऐसा कहा कि दीनता और हीनता भगवत
प्राप्ति में बाधक नहीं हैं । राम जी तो दीन-हीन पर विशेष कृपा करते हैं ।
हनुमान जी ने कहा कि सहज कृपालु ऐसे स्वामी को जो लोग भूल कर संसार
में भ्रमते हैं यदि वे दुखी रहें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है । इस प्रकार राम जी
के गुण समूहों को कहते हुए हनुमान जी को अपार-अलौकिक विश्राम-आनंद प्राप्त हुआ ।
फिर विभीषण जी ने सारी कथा कह सुनाई जिस प्रकार से
सीता जी अशोक वाटिका में रह रही थीं । तब
हनुमान जी ने कहा कि हे भाई विभीषण अब मैं सीता माता का दर्शन करना चाहता हूँ ।
विभीषण जी ने सारी युक्ति बताई और हनुमान जी महाराज विभीषण जी से विदा लेकर चल दिए
। हनुमान जी महाराज ने फिर से वही छोटा सा आकर बना कर अशोक वन में, जहाँ
सीता जी थीं, चले गए ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।