राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Monday, August 4, 2025

सुन्दरकाण्ड-११-हनुमान जी का लंका में विभीषणजी से भेंट करने के लिए निश्चय करना

 

हनुमानजी महाराज मन ही मन श्री रघुनाथ जी का ध्यान करके  पं. राधेश्याम जी के शब्दों में निम्न प्रकार से विनती करने लगे -

       

श्रीराम जय राम जय जय राम ।

श्रीराम जय राम जय जय राम ।।

मेरा बल बुद्धि पराक्रम आए तनिक न काम ।

अपने बल से कार्य अब पूर्ण करा लो राम ।।

भटक अँधेरे में रहा स्वामी हो निराश अविराम ।

दो प्रकाश मुझ दास को हे रविकुल रवि राम ।।


  इतना कहते ही उन्हें एक घर दिखाई पड़ा जो बहुत ही सुंदर लग रहा था । और वहाँ अलग से एक हरि मन्दिर बना हुआ था । घर में रामजी के आयुध धनुष और वाण आदि अंकित थे घर की शोभा कही नहीं जा सकती है । नए-नए तुलसी पौधों के समूह थे जिन्हें देखकर हनुमान जी महाराज बहुत ही हर्षित हुए ।


उपरोक्त लक्षण सज्जन के घर के लक्षण थे । लेकिन लंका में तो राक्षसों का ही निवास था । इसलिए यह स्वाभाविक प्रश्न था कि राक्षसों के बीच में सज्जन कैसे रह सकता है । क्या यह सच है अथवा दिखावा है, धोखा है ।

 

  हनुमान जी मन में ऐसा तर्क करने लगे । इसी बीच में विभीषण जी जाग उठे । सुबह का समय था और सज्जन सुबह तड़के ही यानी व्रह्म मुहूर्त में ही जगते हैं । दूसरे सज्जन जगते ही अपने ईष्ट का ध्यान यानी सुमिरण करते हैं । और विभीषण जी भी जगते ही राम-राम कहा जिससे हनुमान जी को हर्ष हुआ और उन्हें निश्चय हो गया कि यह सज्जन है । सज्जन का मतलब भक्त ह्रदय । जो राम जी का है वही सज्जन है ।

  सज्जन व्यक्ति से हर किसी का भला ही होता है । भला न भी हो तो बुरा तो कभी होता ही नहीं । इसलिए हनुमान जी ने सोचा कि इनसे जरूर जान-पहचान करूँगा यानी मिलूँगा क्योंकि सज्जन व्यक्ति से कोई हानि नहीं होती है । यदि वह किसी का कोई काम नहीं बना सकता तो बिगाड़ता भी नहीं ।

 

। जय श्रीराम 

। जय हनुमान 

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