हनुमानजी महाराज मन ही मन श्री रघुनाथ जी का ध्यान
करके पं. राधेश्याम जी के शब्दों में निम्न
प्रकार से विनती करने लगे -
श्रीराम जय राम जय जय राम
।
श्रीराम जय राम जय जय राम
।।
मेरा बल बुद्धि पराक्रम
आए तनिक न काम ।
अपने बल से कार्य अब
पूर्ण करा लो राम ।।
भटक अँधेरे में रहा
स्वामी हो निराश अविराम ।
दो प्रकाश मुझ दास को हे रविकुल रवि राम ।।
इतना
कहते ही उन्हें एक घर दिखाई पड़ा जो बहुत ही सुंदर लग रहा था । और वहाँ अलग से एक
हरि मन्दिर बना हुआ था । घर में रामजी के आयुध धनुष और वाण आदि अंकित थे घर की
शोभा कही नहीं जा सकती है । नए-नए तुलसी पौधों के समूह थे जिन्हें देखकर हनुमान जी
महाराज बहुत ही हर्षित हुए ।
उपरोक्त लक्षण सज्जन के घर के लक्षण थे । लेकिन
लंका में तो राक्षसों का ही निवास था । इसलिए यह स्वाभाविक प्रश्न था कि राक्षसों
के बीच में सज्जन कैसे रह सकता है । क्या यह सच है अथवा दिखावा है, धोखा है ।
हनुमान
जी मन में ऐसा तर्क करने लगे । इसी बीच में विभीषण जी जाग उठे । सुबह का समय था और
सज्जन सुबह तड़के ही यानी व्रह्म मुहूर्त में ही जगते हैं । दूसरे सज्जन जगते ही
अपने ईष्ट का ध्यान यानी सुमिरण करते हैं । और विभीषण जी भी जगते ही राम-राम कहा
जिससे हनुमान जी को हर्ष हुआ और उन्हें निश्चय हो गया कि यह सज्जन है । सज्जन का
मतलब भक्त ह्रदय । जो राम जी का है वही सज्जन है ।
सज्जन
व्यक्ति से हर किसी का भला ही होता है । भला न भी हो तो बुरा तो कभी होता ही नहीं ।
इसलिए हनुमान जी ने सोचा कि इनसे जरूर जान-पहचान करूँगा यानी मिलूँगा क्योंकि
सज्जन व्यक्ति से कोई हानि नहीं होती है । यदि वह किसी का कोई काम नहीं बना सकता
तो बिगाड़ता भी नहीं ।
।। जय हनुमान ।।