समुंद्र के उस पार वन था । हनुमान जी ने उसकी सुंदरता को देखा । वहाँ
मधु के लोभ में भौरें गुंजायमान थे । तरह- तरह के पेड़, फल और फूल सुंदर लग रहे
थे । पक्षियों और मृगों (पशुओं) के समूह हनुमान जी के मन को अच्छे लगे । हनुमान जी
ने सामने एक बड़ा पर्वत देखा और उस पर बिना किसी डर के दौड़ते हुए चढ़ गए ।
शंकर जी श्रीरामचरितमानस जी की कथा सुनाते हुए पार्वती जी से कहने लगे
कि हे उमा यह हनुमान जी की उपलब्धि नहीं है । यह तो राम जी के प्रताप की महिमा है जो
काल को भी अपना ग्रास बना लेता है । अर्थात हनुमान जी ने जो भी किया वह सब राम जी के
प्रताप से ही हुआ है । क्योंकि इतना साहसी, दुर्गम और बल तथा बुद्धिमतापूर्ण कृत कार्य करना वानर
के लिए सहज नहीं है । यह तो राम जी के कृपा से ही संभव है ।
हनुमान जी ने उस पर्वत पर चढ़कर लंका को देखा । निरीक्षण किया । लंका ऐसा
अद्भुत दुर्ग था जिसका वर्णन नहीं हो सकता । दुर्ग बहुत ही ऊँचा था तथा इसके चारो ओर
समुंद्र का जल था । सोने के कोट थे जिनका अद्भुत प्रकाश था । कोट पर मणियाँ जड़ी थी जिनकी
बहुत अधिक सुंदरता थी ।
लंका दुर्गम नगरी थी । एक तो समुंद्र के बीच
में थी । फिर दुर्ग के बाहर बड़ी ऊँची दीवार और फिर
उसके बाहर गहरी-गहरी खाईं थी । कहते हैं भोगावती नगरी है जिसमें सापों का वास
है और अमरावती में देवताओं का वास है और ये नगरियाँ बहुत ही सुंदर हैं । लेकिन
लंका इनसे भी कहीं अधिक सुंदर व श्रेष्ठ थी ।
भोगावति
जस अहिकुल वासा ।
अमरावति
जस सक्र निवासा ।।
तेहि
ते अधिक रम्य अति बंका ।
जग
विख्यात नाम तेहिं लंका ।।
इसमें वन, उपवन, वाटिका और बगीचे थे । सुंदर घर, एक दूसरे को काटती सड़के, गलियाँ व बाजार था, नगर का निर्माण विविधि तरीके से हुआ था । पानी के समुचित साधन जैसे कूप,
तालाब और बावड़ी आदि थे । नगरी में सुरक्षा बहुत थी । बड़े-बड़े राक्षसों
से रक्षित थी ।
अनेकों हाथी, घोड़े और खच्चर थे । पैदल और रथी सेना का समूह था । अनेकों रूप में बलवान सेना की टुकडियाँ थीं जिनका वर्णन नहीं हो सकता । कहीं बड़े-बड़े मल्ल गर्जना कर रहे थे और योद्धा अखाड़ों में लड़ रहे थे तो कहीं राक्षस गाय, भैंस, गधों, बकरियों आदि का भक्षण कर रहे थे । नाना तरीके से बिकट शरीर वाले योद्धा चारों दिशाओं से नगरी की रक्षा कर रहे थे ।
हनुमान जी ने देखा कि लंका नगरी में अनेकों रक्षक
हैं जो चारों दिशाओं से नगरी की रक्षा कर रहे हैं । इसलिए हनुमान जी ने मन में
बिचार किया कि छोटा सा रूप बनाकर रात में नगरी में प्रवेश कर जाऊँ । इस प्रकार पर्वत
से ही लंका को भली भांति देखकर, बिचार करके हनुमान जी ने बहुत
ही सूक्ष्म आकार बनाकर और राम जी का सुमिरण करके लंका की ओर (लंका में प्रवेश करने
के लिए) चल दिए ।
।। महावीर हनुमान जी महाराज की जय ।।