भगवान श्रीराम कहते हैं कि पवननंदन ! मैं संपूर्ण लोकों का
एकमात्र स्रष्टा, सभी लोकों का एकमात्र पालक, सभी लोकों का एकमात्र संहारक, सबकी
आत्मा सनातन परमात्मा हूँ ।
सर्वलोकैकनिर्माता सर्वलोकैकरक्षिता ।
सर्वलोकैकसंहर्ता सर्वात्माहं सनातनः ।।
मैं समस्त वस्तुओं के भीतर रहने वाला अन्तर्यामी आत्मा तथा
सबका पिता हूँ । सारा जगत मेरे ही भीतर स्थित है, मैं इस संपूर्ण जगत के भीतर
स्थित नहीं हूँ । वत्स ! तुमने जो मेरा अद्भुत स्वरूप देखा है, यह मेरी एक
उपमा मात्र है । इसे मैंने माया द्वारा दिखाया है । मैं सभी पदार्थों के भीतर रहकर
संपूर्ण जगत को प्रेरित करता हूँ । यह मेरी क्रिया शक्ति का परिचय है ।
हनुमन ! यह संपूर्ण विश्व मेरे सहयोग से ही चेष्टाशील होता है ।
यह मेरे स्वभाव का ही अनुसरण करने वाला है । मैं ही सृष्टिकाल में समस्त जगत की
रचना करता हूँ । तथा एक दूसरे रूप से इसका संहार भी करता हूँ । ये दोनों प्रकार की
अवस्थाएँ मेरी ही हैं ।
मैं आदि,मध्य और अंत से रहित तथा माया तत्व का प्रवर्तक हूँ ।
मैं ही सृष्टि के आरंभ में प्रधान और पुरुष दोनों को क्षुब्ध करता हूँ । फिर परस्पर
संयुक्त हुए उन दोनों से ही सबकी उत्पप्ति होती है ।
।। जय श्रीराम ।।
।। जय श्रीहनुमान ।।