राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Monday, May 20, 2024

श्रीराम गीता- भाग छः - उपनिषद सिद्धांत का निरूपण-एक

   ( भगवान श्रीराम का हनुमानजी को उपदेश )


भगवान श्रीरामचन्द्रजी ने अपने उपदेश को जारि रखते हुए कहा- ‘हनुमन ! अव्यक्त परमात्मा से काल, प्रधान नामक तत्व और परमपुरुष इन तीनों की उत्पत्ति हुई है । इन तीनों से ही यह संपूर्ण जगत उत्पन्न हुआ है इसलिए संपूर्ण जगत मैं ही हूँ ।

 

परब्रह्म परमात्मा के सब ओर हाथ-पैर हैं । उनके नेत्र, मस्तिष्क और मुख भी सब ओर है । उनके कान भी सब ओर है । वे लोक में सबको व्याप्त करके स्थित हैं । वे संपूर्ण इन्द्रियों के गुणों को प्रकाशित करने वाले हैं, तथापि समस्त इन्द्रियों से रहित हैं । वे सबके आधार हैं । उनका आनंद स्थिर है । वे अव्यक्त हैं । उनमें द्वैत का अभाव है । वे संपूर्ण उपमाओं से रहित और प्रमाणों के अगोचर हैं ।

 

  निर्विकल्प, निराभास, सबके प्रकाशक तथा परम अमृत-स्वरूप हैं । उनमें भेद का सर्वथा अभाव है । तथापि वे भिन्न-भिन्न शरीर धारण करते हैं । सनातन, ध्रुव और अविनाशी हैं । वे निर्गुण, परम व्योमस्वरूप तथा ज्ञानमय हैं, विद्वान पुरुष उन्हें इसी रूप में जानते हैं । वे ही संपूर्ण भूतों के आत्मा हैं । वाह्य और आभ्यंतर सभी पदार्थों से परे हैं । वह सर्वत्र व्यापक, शांत स्वरूप ज्ञानात्मा परमेश्वर मैं ही हूँ – ‘सोऽहं सर्वत्रगः शान्तो ज्ञानात्मा परमेश्वरः’

 

  मुझ अव्यक्त स्वरूप परमेश्वर ने इस संपूर्ण विश्व को व्याप्त कर रक्खा है । संपूर्ण भूत मुझमें ही स्थित हैं । इस प्रकार जो मुझ परमात्मा को जानता है, वही वेदवेत्ता है ।

 

।। जय श्रीराम ।।

।। जय श्रीहनुमान ।।

 

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