राम प्रभू के निकट सनेही । दीन मलीन प्रनत जन नेही ।।
अघ अवगुन छमि होउ सहाई । संतोष मिलैं जेहिं श्रीरघुराई ।।

Thursday, December 4, 2025

श्रीसुंदरकाण्ड भाग-१६- सीताजी का हनुमानजी से रामजी और लक्ष्मणजी का कुशल समाचर पूछना

 

जब सीताजी ने जान लिया कि हनुमानजी राम जी के जन यानी भक्त हैं तो हनुमान जी पर सीताजी की गाढ़ी प्रीति हो गई । जब दो सच्चे भक्त मिलते हैं तो दोंनो के बीच ऐसी ही प्रीति हो जाती है । सीताजी के नयन सजल हो गए । और शरीर पुलकित हो गया । जब भक्त आपस में मिलते हैं तो भगवान की चर्चा करते हैं । भगवान के बारे में ही प्रश्न करते और बातचीत करते हैं ।

 

 

 सीता जी ने कहा कि हे हनुमान मैं विरह रुपी सागर में डूब रही थी । लेकिन आप मुझे बचाने के लिए जहाज बनकर आ गए हो । जब भक्त भगवान के विरह में डूब रहा हो तो उसे सत्संग मिल जाय, भगवान की चर्चा करने और सुनने का अवसर मिल जाय तो यही उसके लिए अवलंबन का काम करता है । सीताजी ने कहा कि मैं बलिहारी जा रही हूँ अब लक्ष्मण जी के सहित सुख के भवन राम जी का कुशल समाचार सुनाओ ।

 

 

  राम जी का ह्रदय बहुत ही कोमल है । वे सहज ही कृपा करने वाले हैं । इसके बावजूद भी हे हनुमान बताओ कि उन्होंने निठुरता क्यों धारण कर लिया है । अपने सेवकों को सुख देना यह उनका सहज वाना है । स्वभाव है । क्या कभी राम जी मुझे भी याद करते हैं ?  राम जी अपने सभी भक्तों को याद करते हैं फिर भी देरी देखकर अथवा दुख देखकर कभी-कभी भक्त को ऐसा लगता है कि शायद भगवान ने हमें भुला दिया है । लेकिन भगवान भक्त को कभी नहीं भुलाते । काल और कर्म वश दुख तो सबको स्पर्श करता है । लेकिन भक्त के पास भगवान की कृपा पहले आ जाती है दुख बाद में आता है । दुख प्रत्यक्ष होता है तो वह दिखता है लेकिन कृपा अप्रतक्ष्य होती है इसलिए भक्त कभी-कभी कृपा का आभास नहीं कर पाता अथवा देरी से कर पाता है ।

 

 

सीताजी ने कहा कि हे तात क्या कभी राम जी के श्याम शरीर का दर्शन करके हमारे नयन शीतल होंगे ? अर्थात क्या मुझे रामजी के दर्शन का कभी सौभाग्य मिलेगा ? यह कहते और सोचते ही सीता जी के नयनों में जल भर आया और उनसे कुछ बोला नहीं जा रहा था । सीताजी ने इतना ही कहा कि हे नाथ आपने तो मुझे बिल्कुल ही भुला दिया ।

 

 

सीता जी को इस प्रकार रामजी के विरह में व्याकुल देखकर हनुमानजी बहुत ही कोमल और विन्रम वाणी में बोले कि हे माता रामजी अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी के साथ कुशलपूर्वक हैं । सहज कृपा के भंडार रामजी केवल आप के दुख दे ही दुखी हैं । अर्थात उनको जो दुख है वह आप के दुखी होने से है । दूर होने से है । हे माता आप अपने हृदय में किसी तरह का भी संशय न रखें क्योंकि राम जी आपसे दुगुना प्रेम करते हैं ।

 

 

हनुमानजी ने कहा कि हे माता अब हृदय में धैर्य धारण करके रामजी का संदेश सुनिए । ऐसा कहते ही हनुमानजी गदगद हो गए और उनके नयन अश्रुओं से भर गए । हनुमान जी की इस (गदगद) अवस्था में कुछ कहा नहीं जा रहा था तब हनुमान जी के हृदय में स्थित राम जी ने ही सीता जी के वियोग को कहना शुरू किया ।


। जयश्रीराम 

। जयश्रीहनुमान 

 

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